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सापेक्षता और अनेकांत : विज्ञान और दर्शन परमाणु का द्रव्यमान उन चार हाइड्रोजन परमाणुओं के द्रव्यमान से थोड़ा-सा कम होता है अर्थात् कुछ द्रव्यमान ऊर्जा अर्थात् ताप और प्रकाश में बदल जाता है। इस कारण वे तारे लाखों वर्ष तक चमकते रह सकते हैं। इसी आधार पर हाइड्रोजन बम का आविष्कार भी हुआ।
इस प्रकार जिस तरह सापेक्षता के सिद्धांत से देश और काल एक ही तत्त्व के दो पक्ष सिद्ध हुए उसी प्रकार द्रव्यमान और ऊर्जा भी एक ही तत्त्व के दो पक्ष सिद्ध हो गये। इस सिद्धान्त के आधार पर कि 'पदार्थ न नया उत्पन्न होता है, न नष्ट होता है'-यह सिद्धान्त बन गया कि “पदार्थ-ऊर्जा का समन्वित रूप न नया उत्पन्न होता है न नष्ट होता है।" निष्कर्ष
विज्ञान द्वारा स्वीकृत सापेक्षता के सिद्धान्त की ऊपर दी गयी रूपरेखा के आलोक में यदि हम अनेकांत अथवा स्याद्वाद के सिद्धान्त को देखने का प्रयत्न करें तो कतिपय तथ्य हमारे सम्मुख आयेंगे१. बौद्ध एवं वेदान्ती का यह कथन है कि यदि कोई घटना स्वतः सिद्ध तर्क
के विरुद्ध दिखायी दे तो हमें स्वतःसिद्ध तर्क को वरीयता देनी चाहिए और उस घटना की ऐसी व्याख्या करनी चाहिए की वह तर्क-विरुद्ध न रह जाये। उदाहरणतः हमें पदार्थ में नित्यता और अनित्यता दोनों दृष्टिगोचर होती है किंतु स्वतः सिद्ध तर्क का तकाजा है कि ये दोनों एक साथ नहीं रह सकती, अतः इनमें से या तो नित्यता ही सत्य है, अनित्यता मिथ्या है (जैसा कि वेदान्ती मानते हैं) अथवा अनित्यता ही सत्य है, नित्यता मिथ्या है (जैसा कि बौद्ध मानते हैं)। इसके विरुद्ध जैन का कथन है कि यदि हमारे अनुभव में कोई ऐसी घटना आती है जो हमारी समझ के विरुद्ध है तो हमें अपने अनुभव का अपलाप नहीं करना चाहिए-प्रत्युत अपनी समझ को बदलना चाहिए। आईंस्टीन ने यही किया। हमने अपनी समझ यह बना रखी कि किसी भी पदार्थ की गति उस पदार्थ को देखने वाले के अनुपात में बदल जाती है-अर्थात उस पदार्थ को देखने वाला यदि (१.) स्थिर है अथवा (२.) पदार्थ की ओर गति कर रहा है अथवा (३.) पदार्थ से विपरीत दिशा में गति कर रहा है तो तीनों दशाओं में पदार्थ की गति उस देखने वाले की परिस्थिति के अनुसार भिन्न होगी किंतु जब यह पाया गया कि प्रकाश के साथ ऐसा नहीं होता है तो आइंस्टीन ने अनुभव का अपलाप नहीं किया बल्कि हमारी इस समझ को बदल दिया कि घड़ियों में कालावधि तथा मानदण्ड की लम्बाई सदा एक ही रहती है। परिणाम यह
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