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महाप्रज्ञ-दर्शन ६. अहिंसा यथास्थिति की पोषक नहीं है बल्कि आमूल-चूल परिवर्तन की
संदेशवाहक है। कर्म सिद्धान्त यह नहीं कहता कि जो गरीब है, वह अपने पूर्वजन्म के पाप कर्मों के कारण गरीब है। गरीबी-अमीरी समाज व्यवस्था से नियंत्रित होती है, पूर्व जन्म के कर्मों से नहीं। गरीब की गरीबी को उसके पूर्वजन्म के पाप का फल बताकर यथास्थिति का समर्थन करना
अहिंसा नहीं क्रूरता है। १०. हमारा भोजन बिना जीव हिंसा के निष्पन्न नहीं हो सकता यह सच है किंतु
भोजन के लिए की जाने वाली हिंसा में तरतमता अवश्य रहती है। मांसाहार की अपेक्षा शाकाहार में कम क्रूरता है। आर्थिक दृष्टि से भी मांसाहार प्राप्त करने के लिए प्रकृति के अधिक संसाधनों का व्यय होता है। और यह विवेक तो बरता ही जा सकता है कि आहार को जुटाने में कम से कम हिंसा का प्रयोग हो। दूध हमारे आहार का हिस्सा है और वह पशु से प्राप्त होता है। किंतु जिस पशु से हम दूध प्राप्त करते हैं, उस पशु के प्रति हमारा व्यवहार करुणापूर्ण हो, तो यह अहिंसा की दिशा में उठा हुआ एक कदम होगा।
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