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महावीर उवाच
१५१ जाति व्यवस्था में जन्म से ही हरेक का काम धंधा निश्चित हो जाता है। इसमें विभिन्न पारिस्थितिकी क्षेत्र और उसकी प्राकृतिक संपदा किसी विशिष्ट वर्ग द्वारा ही उपयोग में लाई जा सकती है। संपदा का ऐसा बंटवारा कर देने से प्रतिद्वंद्विता और संघर्ष घटाने और उचित सामाजिक वातावरण बनाने में मदद मिली। जिस वर्ग को जो पारिस्थितिकी क्षेत्र सौंप दिया गया, वह निश्चिंत होकर उसके इस्तेमाल के ऐसे तरीके विकसित कर सका, जिनमें न तो संपदा को कोई नुकसान पहुंचा, और न उस वर्ग विशेष को । उसे कभी यह डर नहीं रहा कि उसके संसाधन कोई उससे छीने लेगा। ऐसे वर्ग ने यह भी महसूस किया कि यदि वह अपने संसाधनों को नष्ट कर लेगा तो उसे दूसरे संसाधनों का इस्तेमाल करने नहीं दिया जाएगा। इसलिए वह बहुत संयम के साथ इस संपदा में अपनी जीविका भी चलाता रहा, समाज को भी उसकी जरूरत की चीजें देता रहा और उस संपदा का संवर्धन करता रहा ताकि उसकी अगली पीढ़ियां भी सम्मान के साथ जी सकें।
(पृष्ठ १३३) शिवाजी महाराज ने १६६० में एक राजाज्ञा निकालकर अपनी नौसेना के जहाज तैयार करने के लिए आम और कटहल जैसे फलदायी वृक्ष काटने की मनाही कर दी थी क्योंकि आम और कटहल के पेड़ कटने से राज्य के किसानों को काफी परेशानी हो रही थी।
(पृष्ठ १३६)
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