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________________ १३६ महावीर उवाच ३५ लाख गैलन कर दी। शहर पर बड़ी बारीक निगरानी रखने वाली एक पत्रिका "अहमदाबाद माँ” के अनुसार “१६८० में घरेलु और औद्योगिक जरूरतें पूरी करने के लिए ४५० नलकूपों से ३४ करोड़ गैलन पानी निकाला गया। हाल के वर्षों में पानी का स्तर १.५ से १.६ मीटर प्रतिवर्ष की दर से नीचे जा रहा है। गौमतीपुर जैसे कुछ इलाकों में कुछ खास मौसम में यह ६ मीटर तक नीचे चला जाता है। जो लोग ज्यादा गहरे से पानी खींच सकने वाले पंप नहीं खरीद सकते, उनकी तकलीफ बढ़ रही है। साबरमती नदी का पाट साल में ज्यादा समय तक सूखा रहता है। इसका एक कारण यह है कि भूमिगत जल के रिसाव से नदी को पानी मिलना कम हो गया। भूजल और ऊपरी पानी के भद्दे प्रबंध का ही यह नतीजा है कि आज गावों की तो बात छोड़िए, छोटे-बड़े शहरों में व राजधानियों तक में पीने के पानी का संकट बढ़ता ही जा रहा है। हैदराबाद के लिए रेलगाड़ी से पानी पहुंचाया जा चुका है। मद्रास, बंगलूर भी छटपटा रहे हैं। जिस शहर के पास जितनी राजनैतिक ताकत है, वह उतनी ही दूरी से किसी और का घंट छीनकर अपने यहां पानी खींच लाता है। दिल्ली यमुना का सारा पानी पी लेती है, इसलिए अब गंगा का पानी लाया गया है। इंदौर ने अपने दो विशाल तालाब पी डाले हैं, इसलिए वहां नर्मदा का पानी आया। वह भी कम पड़ने लगा तो वहां नर्मदा चरण-२, चरण-३ की भी तैयारी हो गई है। भूमि के संबंध में जो "अतिचराई" जैसे शब्द निकाल सकते हैं, उन्हें शहरों की इस "अति पिवाई के बारे में भी सोचना होगा। भूमिगत पानी के अति उपयोग का नतीजा यह भी हो सकता है कि उसमें खांसकर समुद्र तट के इलाकों में, खारा पानी मिल जाए। इससे फिर रहा-सहा पानी भी पीने या सिंचाई के लायक नहीं रह पाएगा। कोई उद्योग पर्यावरण को किस हद तक बिगाड़ सकता है इसका दुखद उदाहरण है तमिलनाडु का आर्काट जिला। यहां आंबूर और रानीपेट शहरों में चमड़ा शोधन के कोई २५० कारखाने हैं। ये अपनी सारी गंदगी को बिना निथारे बहाए चले जा रहे हैं। इस जहर के कारण पैदावार लगभग ७० प्रतिशत से ज्यादा घट गई है, पानी पीने लायक नहीं बचा है। सांस और चर्म के रोग बढ़ रहे हैं। उस बदबूदार इलाके में पशु भी चरने नहीं जाते हैं। देश से निर्यात होने वाली चमड़े से बनी कुल चीजों का ७० प्रतिशत तमिलनाडु में चल रहे ४२३ मान्यता प्राप्त चर्मशोधन कारखानों में बनता है। इस विदेशी मुद्रा की कीमत चुका रहे हैं जिले के रानीपेट, आंबूर और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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