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महाप्रज्ञ-दर्शन और उन्हें घटने से रोकें। इसका एक ही उपाय है-पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन को रोका जाए, क्योंकि इसी से यह संसार विपदाओं का घर बन रहा
(पृष्ठ ३७) धारवाड़ जिले (कर्नाटक) के हरिहर शहर में “हरिहर पॉली फाइबर फैक्ट्री” रोजाना १६५ टन फैक्टरी ग्रेड लुगदी तैयार करती है जिसका उपयोग पास की ग्वालियर रेयान एंड सिल्क मैनुफैक्चरिंग कंपनी रेयान बनाने में करती है। इन दोनों कारखानों से रोजाना ४५,००० घन मीटर गंदा पानी निकलता है।
(पृष्ठ ३८) नलकूपों की संख्या बढ़ने का अर्थ है भूमिगत पानी का ज्यादा उपयोग। जो हाल दूसरे सभी संसाधनों के शोषण का है, वही पानी का भी है। उसका बेहिसाब दुरुपयोग होता है। इस कारण से भी पानी की सतह नीची होती जा रही है। कुदरती तौर पर जितना पानी भूमिगत भंडार में भरता है, उससे ज्यादा पानी नलकूप बाहर खींच लाते हैं। इसका मतलब यह है कि यह कीमती भंडार हमेशा के लिए घटता जा रहा है।
पानी की सतह के घटने से साधारण किसान बड़ी परेशानी में पड़ जाते हैं। पैसे वाले किसान तो अपने कुंए गहरे करवाकर कुछ समय के लिए खतरे से बच जायेंगे पर जो खुले कुंए काम में आते हैं और परंपरागत पद्धति से पानी खींचकर अपना और मवेशियों का गुजारा करते हैं, उन पर कहर टूट पड़ता है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड ने साफ कहा है कि मलेरकोटला जिले में सालाना ५८,००० हेक्टेयर-मीटर पानी भूमिगत भंडार से खींचा जाता है जिसके बदले में वहां केवल ४६,००० हेक्टेयर-मीटर पानी भर पाता है। पहले पानी की सतह १२ से १५ फुट नीचे थी। अब यह ३० फुट से ज्यादा नीची हो गई है। इस कारण क्षेत्र के सारे रहट बेकार हो गए हैं।
(पृष्ठ ३६) तासगांव तालुके के मनेराजुई गांव में गन्ने के फसल के वास्ते पानी की आपूर्ति करने की ६,६३,००० रुपयों की एक योजना १६८१ के नवम्बर में मंजूर की गई। एक साल पूरा होते-होते पानी का स्रोत सूख गया। १६८२ में तीन नए नलकूप खोदे गए जिनकी पानी खींचने की क्षमता ५०,००० लिटर रोजाना थी, पर वे भी नवम्बर १६८३ तक सूख गए। १९८४ में वहां २०० मीटर गहरे कई बोरवैल खोदे गए, वे भी सूख गए।
अब लगभग १५ किलोमीटर दूर से टैंकरों द्वारा पानी लाया जा रहा है। अहमदाबाद महानगर पालिका ने भूमिगत जल खींचने की अपनी क्षमता १६५१-५२ के एक करोड़ सत्तर लाख गैलन से बढ़ाकर १६७१-७२ में १८ करोड़
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