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महाप्रज्ञ-दर्शन (लकड़ी की तस्करी और कीमती जमीन जायदाद आदि के रूप में) लूट होती
(पृष्ठ ३१) देश की संसद से मुश्किल से कोई ३५ किलोमीटर दूर दिल्ली-हरियाणा सीमा पर हजारों मजदूर रोजाना बहुत ही खतरनाक परिस्थिति में काम कर रहे हैं। ये जगह है कुख्यात “भट्टी” खानों की। कुल वार्षिक आमदनी है कोई १५ करोड़ और यहां से निकलता है पत्थर, सिलिका, बजरी और ऐसा कच्चा माल जो निर्माण कार्य में और शीशे के उद्योगों में खपता है। बिहार, राजस्थान और उत्तरप्रदेश से आये कोई १५ से २० हजार मजदूर यहां रात-दिन अपनी जान की बाजी लगाते हैं। १००-१०० फुट खड़ी दीवार वाले गड्ढ़ों में ये रस्सियों के सहारे उतरते हैं। पी०यू०सी०एल० के सचिव श्री इन्द्रमोहन का कहना है कि सन् ७८ से अब तक कोई ४०० मजदूर मारे जा चुके हैं और इनमें से किसी के भी परिवार को पूरा मुआवजा नहीं मिल पाया है। ज्यादातर मौतें खान धसने से हुई है।
(पृष्ठ ३२)
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