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महाप्रज्ञ उवाच
काम का एक अर्थ है-काम वासना (सैक्स)। उसका दूसरा अर्थ है-अधिकार, संग्रह और उपभोग की इच्छा । अनियंत्रित काम व्यवस्था अनियंत्रित अर्थव्यवस्था से कम खतरनाक नहीं होती।
इस शरीर में रहने वाला, इन्द्रिय और मन के जगत में जीने वाला कोई भी व्यक्ति सर्वथा अकाम बन जाये, सर्वथा कामना मुक्त बन जाए यह कल्पना नहीं की जा सकती। यह सोचा जा सकता है कि किस व्यक्ति ने कितना परिष्कार किया, कितना शोधन किया है। शोधन का सिद्धान्त संभव बनता है, अकाम का सिद्धान्त संभव नहीं बनता। अकाम की स्थिति वीतराग की स्थिति है। जब वह स्थिति प्राप्त होती है, तब व्यक्ति सांसारिक बंधनों से छूट जाता
है
कामना की पूर्ति का साधन है-अर्थ। यह जीवन का दूसरा पुरुषार्थ है। अर्थ के आधार पर ही कामनाओं को पूरा किया जाता है। मन में कामना जागती है-अर्थ-व्यय से वह पूरी हो जाती है।
निरंकुश कामना और निरंकुश अर्थ-ये दोनों अपरिष्कृत रहकर व्यक्ति में जो परिवर्तन लाते हैं, वह परिवर्तन सामाजिक अशांति को जन्म देता है।
आज के विकसित राष्ट्र, जो साधनों से सम्पन्न हैं, जिनके पास प्रचुर वैभव है, सम्पत्ति है, अर्थ के स्रोत हैं, वे इन मानसिक अशान्ति के जीते जागते उदाहरण हैं।
धर्म एक खोज है-प्रवृत्ति के शोधन की, काम के परिष्कार की। इस बात पर अधिक बल दिया गया है कि कामना का परिष्कार करो, साधन शुद्धि को ध्यान में रखो।
महावीर ने परिग्रह को परिभाषित करते हुए कहा-मूर्छा परिग्रह है। उन्होंने यह नहीं कहा कि धन परिग्रह है। मूल परिग्रह है काम-वासना ।
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