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________________ 88 लेश्या और मनोविज्ञान • रंग में गति होती है। कुछ रंग आगे बढ़ने वाले (Advancing) और कुछ पीछे हटने वाले (Receding) होते हैं । लाल, नारंगी और पीला आगे बढ़ने वाले रंग हैं, इनमें .कमरा छोटा प्रतीत होता है जबकि बैंगनी, नीला, जामुनी रंग पीछे हटने वाले होने के कारण इनमें कमरा बड़ा और लम्बा दिखाई देता है। गर्म रंग केन्द्र से बाहर की ओर गति करते हैं। ठण्डे रंग केन्द्र की ओर गति करते हैं। प्रयोगकर्ताओं ने परीक्षण के बाद यह तथ्य स्वीकार किया कि संवेगात्मक, दृढ़प्रतिज्ञ तथा पदार्थोन्मुखी व्यक्ति सामान्यत: तेज, चमकदार रंग पसन्द करते हैं जबकि शान्त, ध्यानी तथा आध्यात्मिक मन वाले व्यक्ति कोमल रंग तथा उनकी छवियों की मांग करते हैं। फेलिक्स ड्युट्च (Felix Deutsch) ने अपनी रंग और प्रकाश संबंधी खोज के निष्कर्ष में निम्न बिन्दुओं का उल्लेख किया है, जिसे फेबर बिरेन (Feber Birren) ने अपनी पुस्तक "कलर साइकॉलोजी एण्ड कलर थेरेपी" में उद्धृत किया है - 1. रंग भावनाओं एवं संवेगों के माध्यम से रक्त परिसंचरण संस्थान पर सहज क्रिया ___करता है। 2. रंग का प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति के लिये अलग-अलग होता है। गर्म रंग किसी व्यक्ति को शांत कर देता है तो किसी को उत्तेजित । इसी प्रकार ठण्डा रंग किसी एक को उत्तेजित, तो दूसरे को निष्क्रिय बना देता है। 3. लाल और हरे प्रकाश की चमक रक्त-चाप को बढ़ा सकती है और नाड़ी गति को तेज कर सकती है या इसके विपरीत भी हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता . है कि व्यक्ति के मन की रचना कैसी है ? रंग की गुणात्मकता और प्रभावकता शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक धरातल पर रंग के प्रभाव की सम्पूर्ण व्याख्या रंग विज्ञान की दृष्टि से इस बात पर निर्भर करती है कि रंग कैसा है ? जैन तत्त्व चिन्तन में भी लेश्या सिद्धान्त की रंग अवधारणा व उसकी गुणात्मक व्याख्या इस बात पर निर्भर करती है कि लेश्या अच्छी है या बुरी? इस सन्दर्भ में आगम ने लेश्या की प्रकृति का उल्लेख निम्न प्रकार से किया है - ___द्रव्यलेश्या की अपेक्षा से लेश्या दुर्गन्धवाली/सुगन्धवाली, अमनोज्ञ/मनोज्ञ, उष्ण/स्निग्ध, शीत/रुक्ष, अविशुद्ध/विशुद्ध होती है। भावलेश्या की अपेक्षा से लेश्या अप्रशस्त/प्रशस्त, संक्लिष्ट/असंक्लिष्ट, अविशुद्ध/शुद्ध, अधर्म/धर्म, दुर्गतिगामी/सुगतिगामी होती है। 1. Faber Birren, Colour Psychology and Colour Therapy, p. 156 2. ठाणं 3/सू. 515-518 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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