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रंगों की मनोवैज्ञानिक प्रस्तुति
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(Kendricc. Smith) लिखते हैं कि मस्तिष्क में प्रवेश किए गए प्रकाश से जैविक प्रक्रिया होती है जो मानसिक व्यवहार को प्रभावित करती है। प्रकाश की सघनता और तरंग दीर्घता सृजनात्मकता और भाव दशाओं को बदल सकती है।'
फेबर बिरेन (Faber Birren)ने जे. पी. गिलफोर्ड का मत उद्धृत करते हुए लिखा है कि रंग संवेदन का सीधा संबंध हमारे मस्तिष्क से जुड़ा है। उन्होंने बताया कि जीवित ऊतक विशेषतः मस्तिष्क के ऊतक रंग और प्रियता-अप्रियता को उत्पन्न करते हैं ठीक वैसे ही जैसे कि दूसरे पदार्थ ऊष्मा, चुम्बकीय शक्ति तथा विद्युत पैदा करते हैं।
मनुष्य और रंग दोनों आन्तरिक स्तर पर एक-दूसरे से बहुत अधिक जुड़े हुए हैं। आज के मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि व्यक्ति के अवचेतन स्तर को और मस्तिष्क को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला तत्त्व है - रंग। रंग मनुष्य का स्वभाव बतला देता है। यह रहस्यवादी तथा विकृत मन वाले लोगों से प्रत्युत्तर निकलवा लेने की क्षमता रखता है। यह अन्दर के अवरोधकों को समाप्त कर आन्तरिक संवेगों को बाहर आने देता है।
रंग की प्रायोगिक भूमिका वैज्ञानिक आधार लिए हुए है। हर आदमी स्वयं को रंग के माध्यम से व्यक्त करता है। अपनी पहचान भी वह इसी माध्यम से बनाता है। स्वयं अपने आपको जानकर योग्यताओं तथा कमजोरियों को पकड़ता है।
रंग विज्ञान में मान्य मुख्य सात रंग-किरणों द्वारा मनुष्य की आधारभूत मानसिकता और प्रवृत्ति का उद्भव होता है। रंग की सही पहचान, सही प्रयोग और सही परिणाम के लिये मनोवैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में गहरा अध्ययन, परीक्षण और प्रयोग किया तथा निष्कर्ष रूप में कुछ रंगों से जुड़ी विशेषताओं का उल्लेख किया है -
विशेषता 1. बैंगनी
आध्यात्मिकता 2. जामुनी
अन्तःप्रेरणा 3. नीला
धार्मिक रुचि 4. हरा
सामंजस्य और सहानुभूति 5. पीला
बौद्धिकता 6. नारंगी
ऊर्जा 7. लाल
जीवन्तता।
1. Faber Birren, Colour and Human Response, p. 44 2. Ibid. Colour Psychology and Colour Therapy, p. 139 3. S.G.J. Ouseley, Colour Meditations, p. 23
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