SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या और मनोविज्ञान ही ब्रह्माण्डीय रंग किरणें व्याप्त रहती हैं। जैसे-जैसे व्यक्ति विकास करता है उसकी रंग चेतना बढ़ती चली जाती है। रंग का भौतिक पक्ष ब्रह्माण्डीय प्रकाश को हमारी स्थूल आंखें नहीं देख सकती, परन्तु हमारे ग्रह पर इसकी भौतिक प्रस्तुति सूर्य के प्रकाश के माध्यम से होती है। सूर्य का प्रकाश शक्ति और ऊर्जा का स्रोत है। सूर्य का प्रकाश त्रिपार्श्व कांच में से गुजरने पर प्रकाश विक्षेपण के कारण सात रंगों में विभक्त होता है । इन सात रंगों (लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, जामुनी और बैंगनी) को स्पेक्ट्रम (Spectrum) कहते हैं। प्रकृति में स्पेक्ट्रम का सबसे अच्छा उदाहरण इन्द्रधनुष है । स्पेक्ट्रम के सातों रंगों की अपनी तरंग दीर्घता है। प्रकाश तरंग रूप में होता है और प्रकाश का रंग उसके तरंगदैर्ध्य पर आधारित है। तरंगदैर्घ्य और कम्पन की आवृत्ति विपरीत प्रमाण (Inverse Proportion) से संबंधित है अर्थात् तरंगदैर्घ्य के बढ़ने के साथ कम्पन की आवृत्ति कम होती है और तरंगदैर्घ्य के घटने पर आवृत्ति बढ़ती है। लाल रंग की तरंगदैर्घ्य सबसे अधिक व बैंगनी रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे कम होती है और लाल रंग की कम्पन आवृत्ति सबसे कम व बैंगनी रंग की सबसे ज्यादा होती है । पदार्थ में सहज गुण होता है कि वह विशेष तरंगदैर्घ्य को छोड़कर शेष तरंगों को अपने में अवशोषित करता है। कोई भी पदार्थ काला तब दीखता है जब वह पूरी तरह से आवृत्ति की प्रत्येक विकिरित ऊर्जा को अपने में अवशोषित कर लेता है और सफेद तब नजर आता है जब वह पूरी तरह से उन्हें परावर्तित कर देता है। ___लेश्या सिद्धान्त में भी तरंगदैर्घ्य और आवृत्ति संबंधी रंग के वैज्ञानिक सिद्धान्त की झलक देखी जा सकती है। कषायों के तीव्र और अल्प प्रकम्पनों के आधार पर लेश्या प्राणीमात्र के अच्छे-बुरे व्यक्तित्व को निर्धारित करती है। आचार्य महाप्रज्ञ ने अपनी पुस्तक 'आभामण्डल' में लिखा है कि कृष्ण लेश्या में आवृत्ति ज्यादा और तरंगें छोटी होती हैं। नील लेश्या में तरंग की लम्बाई बढ़ जाती है, आवृत्ति कम हो जाती है। कापोत लेश्या में तरंग की लम्बाई और बढ़ जाती है तथा आवृत्ति और कम हो जाती है। तेजो लेश्या में आते ही परिवर्तन शुरू हो जाता है। पद्म लेश्या में और शुक्ल लेश्या में पहुंचते ही आवृत्ति कम हो जाती है, केवल तरंग की लम्बाई मात्र रह जाती है। इस लेश्या में व्यक्तित्व का पूरा रूपान्तरण हो जाता है। मानसिक भूमिका पर रंग-प्रभाव रंग के मनोवैज्ञानिक प्रभाव का आधार विकिरित ऊर्जा की विशिष्ट तरंग दैर्ध्यता है। American Society for Photobiology के पूर्व अध्यक्ष केन्ड्रीक सी. स्मिथ 1. आचार्य महाप्रज्ञ, आभामण्डल, पृ. 57, 58 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy