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________________ मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में लेश्या 79 जैन सिद्धान्त के अनुसार चाहे सम्यग्दृष्टि जीव हो या मिथ्यादृष्टि जीव, सभी के ज्ञान उत्पत्ति के समय विशुद्धलेश्या, प्रशस्त अध्यवसाय और शुभ परिणाम आदि का उल्लेख मिलता है। प्रज्ञापना में लिखा है कि मरुदेवा का जीव जीवन्तपर्यन्त वनस्पति रूप में था।' (क) ततो यद मीयते सिद्धति-मरुदेवा जीवो यावज्जीवभावं वनस्पतिरासीदिति, (ख) मरुदेवा हि स्वामिनी आससारं त्रसत्वमात्रमपि नानुभूतवती किं पुनर्मानुषत्वं तथापि योगबलसमृद्धेन शुक्लध्यानाग्निना चिरसंचितानि कर्मेन्धनानि भस्मसात्कृतवती। तदाह - जह एगा मरुदेवा ऊच्चंतं थावरा सिद्धा ....... ननु जन्मान्तरे पि अकृतक्रूरकर्मणां मरुदेवादीनां योगबलेन युक्तः कर्मक्षयः ऐसा जीव भी सम्यक्त्व प्राप्त कर केवल आत्म परिणामों की शुद्धि से केवलज्ञान प्राप्त कर लेता है। जब मरुदेवा भगवान ऋषभ के केवलज्ञान उत्पन्न होने पर उनके दर्शनार्थ आई तब अपूर्व समवसरण को देखा। परिणामों की विशुद्धि होती गई और अन्ततः कैवल्य लाभ और सिद्धि प्राप्त हो गई। ___ गुणस्थानों का अवरोहण भी बिना लेश्या विशुद्धि के सम्भव नहीं। सम्यक्त्व प्राप्ति की अनिवार्यतम अपेक्षा है - शुभ परिणाम, शुभ अध्यवसाय, शुभ लेश्या। सातवीं नारकी में जीव को अन्तराल काल में सम्यक्त्व की प्राप्ति सम्भव है इस बात की पुष्टि षट्खण्डागम करता है कि मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृति की सत्ता वाला कोई एक मिथ्यादृष्टि जीव सातवीं नारकी में कृष्णलेश्या के साथ उत्पन्न होता है। छह पर्याप्तियां पूर्णकर, विश्राम ले, विशुद्ध होकर सम्यक्त्व को प्राप्त करता है। आत्मविकास का पहला चरण सम्यक्दर्शन-सम्यक्त्व प्राप्ति माना गया है। जैन आगमों में लिखा है कि सम्यक्त्व की उपलब्धि शुभ परिणाम, शुभ अध्यवसाय और विशुद्ध भावलेश्या के बिना नहीं होती। आचार्य मलयगिरि का कहना है कि सम्यक्त्व, देशविरति तथा सर्वविरति की उपलब्धि के समय अन्तिम तीन शुभ लेश्याएं होती हैं, उत्तरवर्ती काल में छहों लेश्याएं पायी जाती हैं। जातिस्मृतिज्ञान में लेश्या का उत्तरोत्तर विशुद्ध होना एक अनिवार्य अंग माना गया है। मृगापुत्र झरोखे में बैठा-बैठा ज्योंहि तप-संयमधारी, शील-समृद्ध और गुणों के मुनि को आकर देखते हैं, अपना पूर्वजन्म और पूर्वकृत श्रामण्य याद आ जाता है। उस समय प्रशस्त अध्यवसाय और विशुद्ध लेश्या परिणामों के होने से तथा मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से उन्हें जातिस्मृति ज्ञान उपलब्ध होता है। __ भगवान महावीर के शिष्य मेघकुमार को विशुद्ध अध्यवसाय लेश्या परिणामों में ही पूर्वभव का ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञातासूत्र में लिखा है कि जितशत्रु आदि राजाओं का मल्लिकुमारी द्वारा विविध वैराग्य रस-भरी बातों का उपदेश दिया गया तथा उन्हें पूर्वकृत श्रामण्य की याद करवायी गयी, उस समय उन्हें शुभ अध्यवसाय, परिणाम और लेश्या 1. योगशास्त्र टीका 1/11; 2. पट्खण्डागम - 1, 5, 290 पु. 4, पृ. 430 3. पंचसंग्रह - भाग-1, सूत्र 31 की टीका; 4. उत्तराध्ययन 19/7 5. ज्ञातासूत्र 1/190 - अंगसुत्ताणि, भाग-3, पृ. 65 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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