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लेश्या और मनोविज्ञान
___ कर्मसंचयन का मूल कारण है - राग-द्वेष । इनसे अनुरंजित चेतना द्वारा जो भी पुद्गल भीतर जाते हैं उनमें एक स्वभाव पड़ जाता है। वे कर्मपुद्गल अपने-अपने स्वभाव के अनुसार अपना-अपना फल देते हैं। एक निर्धारित समय तक भण्डार में रहते हैं। काल मर्यादा समाप्त होते ही परिपक्व होकर बाहर आ जाते हैं। तब व्यक्तित्व प्रभावित होता है। उनका फलानुभव करता है। यह सारी प्रक्रिया अचेतन मन की है।
चेतन और अचेतन के स्तर पर होने वाली व्यक्तित्व की संरचना बड़ी जटिल है। इसे समझने के लिए कषाय, अध्यवसाय, लेश्या, चित्त, मन और योग तक की यात्रा एक सार्थक प्रयास प्रतीत होता है। जैन दर्शन के मूर्धन्य विद्वान् आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने अपने विपुल प्रेक्षा साहित्य में स्थान-स्थान पर इनकी मनोवैज्ञानिक व्याख्या की है, जिसे संक्षेप में चित्र द्वारा इस प्रकार प्रस्तुति दी जा सकती है -
MUSCULAI
SCULAR SYSTEM MENTAL SYSTEM RVOUS SYSTEM -RINE SYSTE
NERVOUS
YSTEM
ENDOCRIN
AND IMPO
MPULSES
OF LA
LIAISON
URGES
OF PRIM
FLELD
OR
QIMAL DR
KARMA
FIELD
BODY
O
SARIRA)
DRIVES
शीर
लश्या तन्न भाव तन्त्र अन्थि तन्का नाड़ी तन्त्र विचार तन्त्र क्रिया तन्त्र
PHYSICAL
BODY
PHYSICAL
BODY
स्थूलशरीर
PSYCHICAL BODY सूक्ष्म शरीर
स्थूलशरीर
चित्र में दर्शाये गए बिन्दुओं का विश्लेषण स्पष्ट करता है कि लेश्या स्थूल और सूक्ष्म शरीर के बीच महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
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