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लेश्या और मनोविज्ञान व्यक्ति किसी परिस्थिति में समझौता नहीं करता, झुकता नहीं। प्रयत्नपूर्वक कठिनता से झुकने वाले अस्थि स्तम्भ की तरह अप्रत्याख्यानी मान वाला व्यक्ति विशेष परिस्थिति में बाह्य दबाव के कारण झुक जाता है। थोड़े से प्रयत्न से झुक जाने वाले काष्ठ स्तम्भ की तरह प्रत्याख्यानी मान वाले व्यक्ति में भीतर छिपी विनम्रता परिस्थिति विशेष को निमित्त पाकर प्रकट हो जाती है । अत्यन्त सरलता से झुक जाने वाले बेंत-स्तम्भ की तरह संज्वलन मान वाला व्यक्ति आत्म गौरव को रखते हुए विनम्र बना रहता है। .
चार प्रकार की माया क्रमश: बांस की जड़, मेढ़े का सींग, चलते हुए बैल की धार और छिलते हुए बांस की छाल की तरह होती है। बांस की जड़ इतनी वक्र होती है कि उसका सीधा होना सम्भव ही नहीं। ऐसी माया व्यक्ति को धूर्तता के शिखर पर पहुँचा देती है। मेढ़े के सींग में बांस से कुछ कम टेढ़ापन होता है । चलते हुए बैल की मूत्र धार टेढ़ी-मेढ़ी होने पर भी उलझी हुई नहीं होती। संज्वलन माया की ऐसी ही वक्रता होती है। ___चार प्रकार का लोभ क्रमशः कृमिरेशम, कीचड़, गाड़ी के खंजन और हल्दी के रंग के समान होता है। कृमिरंग इतना पक्का होता है कि प्रयत्न करने पर भी रंग उतरता नहीं। अनन्तानुबन्ध लोभ व्यक्ति पर पूर्णत: हावी रहता है । वस्त्रों पर लगे कीचड़ के धब्बे सहजतः साफ नहीं होते। वैसे ही अप्रत्याख्यानी लोभ के धब्बे आत्मा को कलुषित करते रहते हैं । गाड़ी का खंजन वस्त्र को विद्रूप बनाता है फिर भी तेल आदि से उतर जाता है। इसी प्रकार प्रत्याख्यानी लोभ साधना, तपस्या आदि से काफी हल्का बन जाता है। हल्दी से रंगा वस्त्र धूप दिखाते ही साफ हो जाता है, वैसे ही संज्वलन लोभ समय और परिणाम दोनों दृष्टियों से बहुत कम प्रभावित कर पाता है।
अनादिकाल से जुड़ा जीव के साथ कषाय का संबंध संसार परिभ्रमण का कारण बनता है। इसके कारण व्यावहारिक जीवन ही असफल नहीं बनता, आत्म गुणों का विनाश भी होता है। जैन तत्त्व दर्शन में कषाय से होने वाले चार प्रकार के अभिघातों का उल्लेख मिलता है -
1. अनन्तानुबन्धी कषाय सम्यक्त्व का अभिघात करता है। 2. अप्रत्याख्यानी कषाय देशव्रत (श्रावकत्व) का अभिघात करता है। 3. प्रत्याख्यानी कषाय सर्वव्रत-साधुत्व का अभिघात करता है। 4. संज्वलन कषाय वीतरागता का अभिघात करता है।
कषायों की मन्दता और तीव्रता के सन्दर्भ में गतिबन्ध की चर्चा उल्लेखनीय है। स्थानांग सूत्र में अनन्तानुबन्धी कषाय का फल नरकगति, अप्रत्याख्यान कषाय का फल तिर्यंञ्चगति, प्रत्याख्यान कषाय का फल मनुष्य-गति और संज्वलन कषाय का फल देवगति बतलाया है।
1. ठाणं 4/282;
2. वही, 4/284;
3. वही, 4/354
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