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________________ मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में लेश्या 69 1. माया - कपटाचार 2. उपधि - ठगने के उद्देश्य से व्यक्ति के पास जाना 3. निकृति - ठगने के अभिप्राय से अधिक सम्मान देना 4. वलय - वक्रता पूर्ण वचन 5. गहन - ठगने के विचार से अत्यन्त गूढ़ भाषण करना 6. नूम - ठगने के हेतु निकृष्ट कार्य करना 7. कल्क - दूसरों को हिंसा के लिए उभारना 8. कुरूप - निन्दित व्यवहार करना 9. जिह्नता - ठगाई के लिए कार्य मन्द गति से करना 10. किल्विषिक - भांडो के समान कुचेष्टा करना 11. आदरणता - अनिच्छित कार्य भी अपनाना 12. गृहनता - अपनी करतूत को छिपाने का प्रयत्न करना 13. वंचकता - ठगी 14. प्रतिकुंचनता - किसी के सरल रूप से कहे गये वचनों का खण्डन करना 15. सातियोग - उत्तम वस्तु में हीन वस्तु की मिलावट करना। यह सब माया की ही विभिन्न अवस्थाएं हैं। ___ लोभ - मोहनीय कर्म के उदय से चित्त में उत्पन्न होने वाली तृष्णा या लालसा लोभ कहलाती है। लोभ की सोलह अवस्थाएं हैं।' 1. लोभ - संग्रह करने की वृत्ति 2. इच्छा - अभिलाषा 3. मूर्छा - तीव्र संग्रह वृत्ति 4. आकांक्षा - प्राप्त करने की आशा 5. गृद्धि - आसक्ति 6. तृष्णा - प्राप्त पदार्थ के विनाश न होने की इच्छा 7. मिथ्या - मिथ्या विषयों का ध्यान 8. अभिध्या - निश्चय से डिग जाना या चंचलता 9. आशंसना - इष्ट की प्राप्ति की इच्छा करना 10. प्रार्थना - अर्थ आदि की याचना 11. लालपनता - चाटुकारिता 12. कामाशा - काम की इच्छा 13. भोगाशा - भोग्य पदार्थों की इच्छा 14. जीविताशा - जीवन की कामना 15. मरणाशा - मरने की कामना 16. नन्दिराग - प्राप्त सम्पत्ति में अनुराग। लोभ की मन:स्थिति में मनुष्य के भीतर भाव पर्यायें बदलती रहती हैं। भगवती सूत्र में लोभ के पन्द्रह नामों को बतला कर उनकी विविध परिणतियों पर प्रकाश डाला गया है। __कषाय के स्वरूप की स्पष्टता को समझाते हुए जैनाचार्यों ने प्रतीकों के माध्यम से बताया कि चार प्रकार के क्रोध क्रमशः पत्थर, भूमि, बालू और धूलि की रेखा जैसा होता है। पत्थर में पड़ी दरार के समान अनन्तानुबन्ध क्रोध किसी के प्रति एक बार उत्पन्न होने पर जीवन-पर्यन्त बना रहता है। सूखते हुए जलाशय की भूमि में पड़ी दरार वर्षा के योग से ही मिटती है। इसी तरह अप्रत्याख्यानी क्रोध एक वर्ष से अधिक स्थायी नहीं रहता। बालू की रेखा हवा के झोंके के साथ मिट जाती है। प्रत्याख्यानी क्रोध चार मास से अधिक स्थायी नहीं रहता। पानी में खींची गई रेखा के समान संज्वलन क्रोध पन्द्रह दिन तक स्थायी रह सकता है। चार प्रकार का अभिमान क्रमशः शैलस्तम्भ, अस्थि, काष्ठ और लता स्तम्भ जैसा बताया गया है। पत्थर का स्तम्भ टूट जाता है पर झुकता नहीं। अनन्तानुबन्धी मान वाला 1. भगवती सूत्र 12/104-106; 2. ठाणं 4/354; 3. वही, 4/283 Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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