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लेश्या और मनोविज्ञान
और लोभ के सन्दर्भ में भगवती सूत्र में दिए गए उनके पर्यायवाची शब्द इन संवेगों की विविध परिणतियों पर प्रकाश डालते हैं। - क्रोध - क्रोध मानसिक और उत्तेजनात्मक आवेग है। क्रोध में क्षमता और तर्कशक्ति लगभग शिथिल हो जाती है। क्रोध जब बढ़ता है तब युयुत्सा को जन्म देता है। युयुत्सा में अमर्ष और अमर्ष से आक्रमण का भाव उत्पन्न होता है। मनोविज्ञान के अनुसार क्रोध और भय में यही मुख्य अन्तर है कि क्रोध के आवेश में आक्रमण का और भय के आवेश में आत्मरक्षा का प्रयत्न होता है।
जैन विचारणा में सामान्यतया क्रोध के दो रूप मान्य हैं - द्रव्यक्रोध और भावक्रोध। द्रव्यक्रोध को आधुनिक मनोवैज्ञानिक दृष्टि से क्रोध का आंगिक पक्ष कहा जा सकता है जिसके कारण क्रोध में होने वाले शारीरिक परिवर्तन होते हैं। भावक्रोध क्रोध का अनुभूत्यात्मक पक्ष है। द्रव्यक्रोध अभिव्यक्त्यात्मक पक्ष है। भगवती सूत्र में क्रोध के दस पर्यायार्थक शब्दों का उल्लेख उसके विविध रूपों की व्याख्या देता है। क्रोध सिर्फ उत्तेजित होना मात्र ही नहीं, चित्त की और भी कई प्रतिकूल अवस्था को क्रोध कहा जाता है, जैसे :
1. क्रोध - आवेग की उत्तेजनात्मक स्थिति 2. कोप - क्रोध से उत्पन्न स्वभाव की चंचलता 3. रोष - क्रोध का परिस्फुट रूप 4. दोष - स्वयं पर या दूसरे पर दोष थोपना 5. अक्षमा - अपराधक्षमा न करना 6.संज्वलन - जलन या ईष्या का भाव 7.कलह - अनुचित भाषण करना 8. चाण्डिक्य - उग्ररूप धारण करना 9. भण्डन - हाथापाई करने पर उतारू हो जाना 10. विवाद - आक्षेपात्मक भाषण करना।' ___ मान - मनुष्य का अहं भी कई दिशाओं में होता है। ऊंचे कुल और ऊंची जाति में जन्म लेना भी मान का कारण बनता है। यदि वह शक्ति-सम्पन्न है, सुख सम्पदा से समृद्ध है, तीव्र बुद्धि है, रूपवान है, शास्त्रों का गहरा ज्ञान है, प्रभुत्व की अपार शक्ति है तो वह स्वयं को सबसे ज्यादा श्रेष्ठ मानता है और अहं मनोवृत्ति उसे अहंवादी, मानी, घमण्डी बना देती है। भगवती सूत्र में मान के बारह नाम बतलाए हैं। प्रत्येक में मान के विविध स्तरों की व्याख्या है -
1. मान - अपने किसी गुण पर अहंवृत्ति 2. मद - अहंभाव में तन्मयता 3. दर्प - उत्तेजना पूर्ण अहंभाव 4. स्तम्भ - अविनम्रता 5. गर्व - अहंकार 6. अत्युत्कोश - अपने को दूसरे से श्रेष्ठ कहना 7. परपरिवाद - परनिन्दा 8. उत्कर्ष - अपना ऐश्वर्य प्रकट करना 9. अपकर्ष - दूसरों को तुच्छ समझना 10. उन्नतनाम - गुणी के सामने भी न झुकना 11. उन्नत - दूसरों को तुच्छ समझना 12. दुर्नाम - यथोचित रूप से न झुकना।
माया - माया में मनुष्य का मन बहुत जटिल होता है। विविध भावों के साथ माया अपने रूप दिखाती है। भगवती सूत्र में माया के पन्द्रह नाम उल्लिखित हैं।
1. भगवती सूत्र 12/103
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