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लेश्या और मनोविज्ञान
__ जैन दर्शन इसके समाधान में काम का विचय यानी विश्लेषण करता है। कामवृत्ति आसक्ति पैदा करती है। आसक्ति दुःख का स्रोत है, क्योंकि आसक्ति द्वेष के बिना नहीं होती। एक के प्रति राग, तो दूसरे के प्रति द्वेष अवश्य होगा। राग और द्वेष दोनों साथ चलते हैं। इसलिए माना गया कि कामसंज्ञा क्रोध भी पैदा करती है।
कामसंज्ञा से आसक्ति और द्वेष पैदा होता है और यह युग्म दूसरी पीड़ाओं को जन्म देता है । कामसंज्ञा के साथ परिग्रह भी आवश्यक है। मनुष्य जो भी संग्रह करता है कामसंज्ञा से प्रेरित होकर करता है। संग्रह होने पर अतृप्ति जागती है। जहां अतृप्ति है वहां सन्तोष नहीं होता। असन्तोष में चौर्यवृत्ति प्रकट होती है। कामना मनुष्य में चौर्यवृत्ति उत्पन्न करती है। माया मृषा की आदत बनती है। फिर कर्मों का संचय होता है। इस संचयन के साथ काम का सीधा संबंध है। ___ काम की प्रगाढ़ता होती है तो कर्मसंचय सामान्य नहीं, चिकना होता है। चिकनी भीत पर रेत डालने से वह रेत भीत का स्पर्श करती है और मिट्टी वहीं चिपक जाती है। काम के साथ यदि आसक्ति गहरी नहीं होती है तो सूखी भींत पर मिट्टी डालने से मिट्टी भींत का स्पर्श कर नीचे आ गिरती है।'
कामसंज्ञा उत्पन्न होती है काम का चिन्तन करने से। साधना के सन्दर्भ में चिन्तन की स्थिरता को भी महत्त्वपूर्ण उपक्रम माना गया है। स्थानांग सूत्र में संज्ञाओं की उत्पत्ति के चार कारणों में से एक कारण माना गया है - मति । जिस विषय में हमारा चिन्तन चलता है वही वृत्ति पैदा हो जाती है और इन वृत्तियों को प्रेरणा मिलती है हमारे भावसंस्थान से।
फ्रायड लिबिडो शब्द का प्रयोग जिस अर्थ में करते हैं, उसे बहुत कम लोग पकड़ पाए हैं । वे उसे संभोग तक ही सीमित कर देते हैं। पर फ्रायड की दृष्टि में उसका वास्तविक अर्थ है - सुख की चाह । जैन दर्शन भी सुख की चाह को प्रत्येक संसारी का एक अनिवार्य लक्षण मानता है। वहां सुख के लिए परमधार्मिक शब्द व्यवहृत हुआ है। मनोवृत्तियों की प्रशस्तता/अप्रशस्तता
आधुनिक मनोविज्ञान मानव व्यवहार को व्याख्यायित करने के लिए सर्वप्रथम जिस सूत्र का अवलम्बन लेता है, वह अनुप्रेरणा है। कोई भी प्राणी केवल अपनी जैविक आवश्यकताओं के लिए कार्य नहीं करता। उसके अतिरिक्त उद्दीपक, वातावरण जैसे न जाने कितने तत्त्व उसके व्यवहार को संचालित करते हैं। अनुप्रेरणा के अर्थ में ही हमें आवश्यकता (Need), अन्तर्नोद (Drive), प्रेरक (Incentive) आदि शब्दों का प्रयोग भी मनोविज्ञान में उपलब्ध होता है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में संवेग को एक शक्तिशाली अनुप्रेरक के रूप में माना गया है। इसका स्वरूप ही स्वयं इसकी अनुप्रेरकता को सिद्ध 1. उत्तराध्ययन 32/29, 30; 2. वही, 25/40
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