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________________ मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में लेश्या 63 भय संज्ञा 1. हीनसत्वता 2. भयानक दृश्य को देखने से उत्पन्न मति 3. भय संबंधी चिन्तन मैथुन संज्ञा 1. मांस और रक्त का उपचय 2. मैथुन संबंधी चर्चा के श्रवण एवं तद्विषयक दृश्यों से उत्पन्न मति। 3. मैथुन संबंधी चिन्तन परिग्रह संज्ञा 1. अविमुक्तता 2. परिग्रह संबंधी चर्चा के श्रवण से उत्पन्न मति 3. परिग्रह संबंधी चिन्तन' चित्तवृत्तियों की उत्पत्ति में लेश्या सिद्धान्त पर्यावरणीय बिन्दु को भी गौण नए। पर देव और नारक में जो स्थित लेश्या बतलाई गई है, उसका मुख्य कारण वहां पर उपलब्ध पर्यावरण ही है। देवों में प्रशस्त स्थित लेश्या और नरक में अप्रशस्त स्थित लेश्या मानी गई है, क्योंकि वहां शुभ और अशुभ पुद्गलों का प्राधान्य है। जैन दर्शन बुरी आदतों की चर्चा पाप के नाम से करता है। उसके प्राणातिपात, मृषावाद आदि अठारह प्रकार हैं । इनमें राग-द्वेष दो जटिल आदतें हैं और शेष सभी उन्हीं की उपजीवी आदतें हैं । इनसे उत्प्रेरित हो व्यक्ति निरन्तर आरम्भ और परिग्रह में संलग्न रहता है । आरम्भ और परिग्रह में सतत संलग्न व्यक्ति की मानसिकता का चित्रण करते हुए भगवान महावीर ने कहा - 1. वह धर्म को उपलब्ध नहीं होता। 2. वह विशिष्ट ज्ञान को उपलब्ध नहीं होता। 3. वह आन्तरिक अनुभूति को उपलब्ध नहीं होता। आचार्य मलयगिरि ने प्रज्ञापना वृत्ति में कौनसी संज्ञा किस गति में उपलब्ध है, इसका उल्लेख कर मन की मनोवृत्ति पर प्रकाश डाला है। उन्होंने लिखा है - नारक में भयसंज्ञा, तिर्यञ्च में आहार संज्ञा, देव में परिग्रह संज्ञा और मनुष्य में लोभ संज्ञा अधिक पायी जाती है। ___ काम एक संज्ञा है। यह प्रत्येक प्राणी में होती है। मनुष्य में ही नहीं, पशु-पक्षियों . और स्थावर प्राणियों में भी पाई जाती है। प्रश्न उभरता है कि जब काम मौलिक मनोवृत्ति है फिर इसे दुःख का कारण क्यों कहा गया ? 1. स्थानांग 4/579-82; 2. प्रज्ञापनामलयवृत्ति पत्रांक 223 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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