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मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में लेश्या
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विचारों का संग्रह, मूलप्रवृत्तियों का वास स्थान लिबिडो का भण्डार गृह है। यहां पर एक दूसरे को प्रभावित किए बिना परस्पर विरोधी आवेग साथ-साथ विद्यमान रहते हैं । अचेतन की तरह ही यह भी अव्यवस्थित और जीवन की वास्तविकता से परे रहता है। ___ अहम् 'मैं' है, जो सोचता है, अनुभव करता है, निर्णय करता है तथा इच्छा करता है। इसे हम इदम् का वह भाग भी मान सकते हैं जो बाह्य संसार से सामीप्य के फलस्वरूप वास्तविकता के सिद्धान्त के रूप में परिणत हो गया है। अहम् के मुख्य कार्य हैं - 1. शरीर के पोषण की आवश्यकता पूर्ण करना तथा इसे हानि से बचाए रखना, 2. इदम् की इच्छाओं का वास्तविकता की मांग के अनुसार तालमेल बिठाना, 3. दमन करना, 4. इदम् और पराअहम् की परस्पर विरोधी चेष्टाओं में सामंजस्य स्थापित करना। इदम् अहम् का ऊर्जा स्रोत है तथा पराअहम् इसका नैतिक अवरोधक है।
पराअहम् में उत्तराधिकार में प्राप्त वे नैतिक प्रवृत्तियां हैं जो सांस्कृतिक वातावरण से ग्रहण किए हुए प्रतिबन्ध, नीति, सदाचार, कई निषेध अथवा विचारों द्वारा परिपुष्ट व परिष्कृत की गई हो। व्यक्तित्व के इस भाग में नैतिकता, निषेधाज्ञा और सामाजिक आदर्श विद्यमान रहते हैं जो व्यक्ति को माता-पिता, अध्यापकों और सामाजिक समूहों से प्राप्त होते हैं। __ व्यक्तित्व के गतिशील अंग इदम्, अहम् तथा पराअहम् अचेतन, अवचेतन, चेतन स्तरों को अपना कार्यक्षेत्र बनाते हैं। 'इदम्' आवेग प्रधानतः अचेतन है। 'अहम्'
अधिकांशतः चेतन' स्तर पर कार्य करता है तथापि इसका बहुत बड़ा भाग 'अवचेतन' तथा 'अचेतन' में स्थित रहता है 'पराअहम्' भी तीन स्तरों पर कार्य करता है पर यह अहम् की अपेक्षा चेतन कम, अवचेतन तथा अचेतन अधिक होता है। ये स्तर व्यक्तित्व के स्थलरूपरेखीय (Topographical) पक्ष हैं, जिसमें इदम्, अहम् तथा पराअहम् के मध्य अन्तर्द्वन्द्व घटित होते हैं। हमारा समस्त व्यवहार इन चेतन, अवचेतन तथा अचेतन अन्तर्द्वन्द्वों के निराकरण के तरीकों का परिणाम है।
मनोविज्ञानी फ्रायड ने मानव व्यवहार की प्रेरक शक्ति के रूप में दो तत्त्व स्वीकार किए हैं। उन्होंने इन दोनों तत्त्वों को इरोस (Eros) और थैनटॉस (Thantos) की संज्ञा दी है। ये दोनों तत्त्व ही व्यक्ति की जीवनमूलक और मृत्युमूलक प्रवृत्ति के सूचक हैं।
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