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मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में लेश्या
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में भी वेदनीय कर्म का फल भोगने के कारण कर्मफल चेतना तो होती है मगर वह बन्धन का निमित्त नहीं बनती। उत्तराध्ययन में भी उल्लेख मिलता है कि इन्द्रियों के माध्यम से होने वाली सुख-दुःखात्मक अनुभूति वीतराग के मन में राग-द्वेष के भाव उत्पन्न नहीं कर सकती।
इस प्रकार न ज्ञानात्मक पक्ष बन्धन का कारण है और न अनुभूत्यात्मक पक्ष । चेतना का तीसरा पक्ष संकल्पात्मक को कर्मचेतना माना गया है, वह बन्धन का कारण है, क्योंकि यह स्वतः सक्रिय चेतना है। संकल्प-विकल्प एवं रागद्वेषात्मक भावों का जन्म चेतना की इसी अवस्था में होता है, अत: जैन दर्शन कर्मचेतना को प्राणी के व्यवहार के सन्दर्भ में मुख्य घटक मानता है।
भगवान महावीर ने कैवल्य के आलोक में जीव और जगत के स्वरूप का साक्षात्कार किया। उनकी वाणी को मनोविज्ञान के सन्दर्भ में पढ़ते हैं तो यह कहना अतिरंजना नहीं होगी कि वे परम मनोवैज्ञानिक थे, क्योंकि उन्होंने मन की विभिन्न अवस्थाओं का प्रतिपादन ही नहीं किया, वहां तक पहुँचने का सोपान पथ भी दिखलाया।
'अणेग चित्ते खलु अयं पुरिसे" यह पुरुष अनेक चित्त वाला है, भगवान महावीर का यह शाश्वत स्वर मनोविज्ञान के उन सारे पक्षों की ओर संकेत करता है जिनमें से बहुतों की अर्थयात्रा करना अब भी मनोविज्ञान के लिए अवशिष्ट है।
श्रमणोपासिका जयन्ती ने भगवान महावीर के समक्ष एक जिज्ञासा रखी - भंते ! प्रशस्त क्या है और अप्रशस्त क्या है ? महावीर ने कहा - लघुता प्रशस्त है और गुरुता अप्रशस्त है। जयन्ती पूरी तरह समाहित नहीं हुई। उसका अगला प्रश्न था - भंते ! क्या जीव हल्का और भारी होता है ? __महावीर ने कहा - जीव प्राणातिपात, मृषावाद आदि क्रियाओं से भारी होता है और इनका निरोध करने से हल्का बन जाता है।
जयन्ती और भगवान महावीर का यह संवाद जहां विधेयात्मक और निषेधात्मक व्यक्तित्व के घटकों की चर्चा करता है वहां इस सूक्ष्म सत्य की ओर भी इंगित करता है कि क्रिया केवल क्रिया के रूप में ही समाप्त नहीं होती, वह अपने पीछे संस्कार के पदचिन्ह भी छोड़ जाती है। वे संस्कार जब उदय में आते हैं तो व्यक्ति फिर तदनुरूप क्रिया करने को तत्पर हो जाता है। हमारे संस्कारों का अक्षय भण्डार इस प्रक्रिया से सदा भरता रहता है। मनोविज्ञान संस्कारों के इसी भण्डार को अचेतन की संज्ञा से अभिहित करता है।
लेश्या हमारी चेतना के सूक्ष्म स्तरों से संबंधित है, इसलिए लेश्या के मनोवैज्ञानिक अध्ययन में फ्रायड के अवचेतन व अचेतन की चर्चा आवश्यक है। फ्रायड के गहन मनोविज्ञान (Depth Psychology) की अवधारणा बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। उनके अनुसार
1. उत्तराध्ययन 32/100;
2. आचारांग 3/1/42
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