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________________ 56 लेश्या और मनोविज्ञान इस सन्दर्भ में यह चिन्तन भी सामने आया - जरूरी नहीं कि सारे अनुभव चेतन ही हों, अधिकांश अनुभव अचेतन होते हैं, अतः यह परिभाषा मन की सभी अवस्थाओं की व्याख्या करने में सक्षम नहीं है। साथ ही चेतना का विज्ञान कहने से मनोविज्ञान आत्मनिष्ठ बन गया जबकि सिर्फ आत्मनिष्ठ अनुभव सही निर्णय नहीं दे सकता। इसका वस्तुनिष्ठ होना जरूरी है। __ आधुनिक मनोविज्ञान ने अपने अध्ययन का क्षेत्र व्यवहार को बनाया। इस विचारणा को वॉटसन ने दृढ़ता से प्रतिपादित किया। व्यवहार को देखा/समझा जा सकता है, इसका स्वरूप वस्तुनिष्ठ है। आगे चलकर इसमें और नया उद्देश्य जोड़ दिया तथा मनोविज्ञान की सर्वांगीण एवं मान्य परिभाषा जेम्स ड्रेवर ने प्रस्तुत की कि मनोविज्ञान वह शुद्ध विज्ञान है जो मानव तथा पशु के उस व्यवहार का अध्ययन करता है जो व्यवहार उसके आन्तरिक मनोभावों और विचारों की अभिव्यक्ति करता है जिसे हम मानसिक जगत कहते हैं।' पन्द्रहवीं शताब्दी से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी तक परिवर्तन के दौर से गुजरता हुआ मनोविज्ञान शब्द का अर्थ इतना बदल गया कि वह केवल व्यावहारिक घटनाओं का व्याख्याता शास्त्र मात्र बनकर रह गया जबकि चेतना की बात सर्वथा लुप्तप्रायः हो गई। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में मनोविज्ञान ने अपने अध्ययन का क्षेत्र अनुभव और व्यवहार को बनाकर व्यक्ति के साथ पर्यावरण के संबंधों की व्याख्या की है पर लेश्या का मनोविज्ञान न केवल पशु-पक्षी और मनुष्य जगत के मन को विषय बनाता है बल्कि उन सभी जीवों के आन्तरिक भावों की व्याख्या करता है जिनके न मन है और न मस्तिष्क। इस दृष्टि से लेश्या के तात्त्विक सिद्धान्तों को मनोविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में दी जाने वाली प्रस्तुति केवल मनोभावों का विश्लेषण ही नहीं करेगी अपितु अशुभ भावों को शुभ भावों में रूपान्तरित करने की प्रायोगिक विधियां भी प्रस्थापित करेगी। चेतना के विविध स्तर __ मनोविज्ञान चेतना के तीन पक्ष मानता है - ज्ञानात्मक (Cognitive) भावात्मक (Affective) और संकल्पात्मक (Conative)। इसी आधार पर चेतना के तीन कार्य माने गए - जानना, अनुभव करना और इच्छा करना। इस विषय पर प्राचीन समय से ही विचार होता रहा है। आचार्य कुन्दकुन्द ने भी चेतना के तीन पक्षों का निर्देश किया - 1. ज्ञानचेतना 2. कर्मफल चेतना 3. कर्म चेतना। तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो ज्ञान चेतना को ज्ञानात्मक, कर्मफल चेतना को भावात्मक और कर्म चेतना को संकल्पात्मक यानी संसार का मूल कारण माना जा सकता है। ___ ज्ञानचेतना कर्मबन्ध का कारण नहीं बनती, क्योंकि वह बन्धन-मुक्त जीवात्माओं में होती है । कर्मफल चेतना भी कर्मबन्ध में निमित्त नहीं बन सकती, क्योंकि अर्हत् या केवली 1. James Drever : Psychology : The study of Man's Mind. 2. पंचास्तिकाय 38 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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