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________________ 42 लेश्या और मनोविज्ञान सलेशी क्रियावादी जीव केवल मनुष्यायु एवं देवायु तथा सलेशी अक्रियावादी, विनयवादी और अज्ञानवादी चारों गतियों का बंधन करते हैं। सलेशी क्रियावादी जीव भवसिद्धिक हैं। किसी न किसी भव में मोक्ष जाने वाले होते हैं एवं सलेशी अक्रियावादी आदि भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक दोनों प्रकार के होते हैं। सलेशी जीव आहारक एक भव से दूसरे भव में जाते समय आहार वर्गणा को ग्रहण करने वाले और अनाहरक दोनों प्रकार के होते हैं, अलेशी जीव एकान्ततः अनाहरक ही होते हैं। इस प्रकार लेश्या के ये दोनों मुख्य विभाग सतत हमारे व्यक्तित्व को नित नया रूप देते रहते हैं। द्रव्यलेश्या और भावलेश्या का पारस्परिक संबंध द्रव्यलेश्या और भावलेश्या के पारस्परिक संबंध के विषय में जिज्ञासा उभरती है कि द्रव्यलेश्या के अनुसार भावलेश्या बनती है या भावलेश्या के अनुसार द्रव्यलेश्या। द्रव्यलेश्या के अनुसार भावलेश्या का होना यदि मान लिया जाये तो द्रव्यलेश्या के काले, नीले, पीले पुद्गल द्रव्य स्वयं अपने आप में अच्छे-बुरे कैसे होंगे, क्योंकि वह अजीव है। उनसे आत्मा के परिणाम/अध्यवसाय कैसे अच्छे-बुरे होंगे? और यदि भावलेश्या के अनुरूप द्रव्यलेश्या बनती है तो भावलेश्या के शुभ-अशुभ का मूल कारण क्या है? आत्म परिणाम प्रत्यलेश्या भाव लेश्यालय कर्मद्रव्य का शुभ "उमपरिणाम -ट्रव्य आश्रव इस सन्दर्भ में द्रव्यकर्म और भावकर्म के पारस्परिक संबंध की चर्चा विशेष महत्व रखती है। जैन कर्म सिद्धान्त कर्म के भौतिक एवं भावात्मक पक्ष पर समुचित जोर देकर जड़ और चेतन के मध्य एक वास्तविक संबंध बनाने का प्रयास करता है। डॉ. टाटिया लिखते हैं कि अपने पूर्ण विश्लेषण में जड़ और चेतन के मध्य योजक कड़ी है। यह चेतना और चेतन युक्त जड़ पारस्परिक परिवर्तनों की सहयोगात्मकता को अभिव्यंजित करता है।' 1. भगवती 30/13-17, अंगसुत्ताणि भाग 2, पृ. 991-92 2. वही, 30/32-33, पृ. 994 3. नथमल टाटियां, स्टडीज इन जैन फिलॉसाफी, पृ. 228 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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