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लेश्या और मनोविज्ञान
5. पद्मलेश्या - मधु, मैरेय आदि आसवों से अनन्तगुना आम्ल, कषैला, मधुर। 6. शुक्ललेश्या - खजूर आदि से अनन्तगुना मधुर, अत्यन्त मधुर।' लेश्या के स्पर्श ___ तीन अप्रशस्त लेश्याओं का स्पर्श करीत गाय की जीभ, शाक के पत्ते से भी अनन्तगुना कठोर और प्रशस्त लेश्याओं का स्पर्श नवनीत न सिरीष पुष्पों से भी अनन्तगुना कोमल बताया गया है। स्थानांग और प्रज्ञापना में इस स्पर्श वैचित्र्य को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि कठोर स्पर्श का कारण है - शीत रुक्ष स्वभाव वाले परमाणुओं का आधिक्य और कोमल स्पर्श का कारण है उष्ण-स्निग्ध स्वभाव वाले परमाणुओं का आधिक्य।
शरीर के स्पर्श की चर्चा प्राचीनकाल से ही होती रही है। शत्रु को पराभूत करने के लिए विषकन्याओं का प्रयोग किया जाता था। उन कन्याओं के शरीर का स्पर्श मारक होता था। आज भी ऐसी स्त्रियों एवं कन्याओं के विषय में सूचनाएं मिलती हैं, जिनका स्पर्श विद्युत के समान और मारक होता है। इनको इलेक्ट्रिक गर्ल्स के नाम से जाना जाता है।
वर्ण, गंध, रस, स्पर्श के अतिरिक्त प्रशस्त लेश्याओं के साथ इष्टतर, कांततर, मनोज्ञतर, मनामतर शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। अप्रशस्त लेश्याओं के साथ इनके विपरीतार्थक शब्द अनिष्टतर, अकांततर, अमनोज्ञतर, अमनामतर शब्द प्रयुक्त हुए हैं। ये लेश्या के स्वरूप को और स्पष्ट करते हैं। इन्हें उदाहरणों से समझाया गया है। जैसे कस्तूरी कृष्ण होने पर भी इष्ट, कान्त, मनोज्ञ, मनाम होती है वैसे ही प्रशस्त लेश्या का परिणाम व्यक्ति को इष्ट, कान्त, मनोज्ञ और मनाम मिलता है। प्रदेश और अवगाह
द्रव्यलेश्या अनन्त प्रदेशात्मक है। इसके पीछे दो हेतु हैं - प्रथम उनके योग्य द्रव्य परमाणु अनन्त-अनन्त होते हैं। दूसरा अनन्त प्रदेशी स्कन्ध के बिना वे जीव के उपयोग में नहीं आ सकती। लेश्या का अवगाह क्षेत्र असंख्य प्रदेशात्मक बतलाया गया है।'
गोम्मटसार में स्वस्थान, समुद्घात और उत्पाद की अपेक्षा लेश्या के अवगाह पर विचार किया गया है। प्रथम तीन लेश्याओं का अवगाह क्षेत्र सर्वलोक है तथा अन्तिम तीन लेश्याओं का क्षेत्र लोक का असंख्यातवां भाग है। समुद्घात की अपेक्षा शुक्ल लेश्या का क्षेत्रावगाह सम्पूर्ण लोक परिमाण होता है।
जीव की अवगाहना भी असंख्य प्रदेश बतलाई गई है। प्रश्न उठता है कि क्या जीव की अवगाहना और लेश्या की अवगाहना का परस्पर संबंध है ? यहां जिस लेश्या का विवेचन किया जा रहा है, वह कर्मलेश्या है। कर्मलेश्या जीव से व्यतिरिक्त नहीं होती। इसीलिए जीव का जो अवगाहना क्षेत्र है वही लेश्या का अवगाहना क्षेत्र है। 1. उत्तराध्ययन 34/10-15; 2. वही, 34/18 3. प्रज्ञापना 17/123, (उवंगसुत्ताणि, खण्ड-2 पृ. 231); 4. प्रज्ञापना टीका, पत्रांक 362 5. प्रज्ञापना 17/141 उवांगसुत्ताणि पृ. 235; 6. गोम्मटसार, जीवकाण्ड - 543
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