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________________ लेश्या और मनोविज्ञान रूप का तात्पर्य बहते हुए कर्म प्रवाह से है। चतुर्दश गुणस्थान में कर्मसत्ता है, प्रवाह है पर वहां लेश्या का अभाव है, क्योंकि वहाँ नए कर्मों का आगमन नहीं होता। प्रज्ञापनावृत्ति में इस मत की सुव्यवस्थित समालोचना की गई है। कर्मबंध के दो हेतु हैं - कषाय और योग। प्रकृतिबंध और प्रदेशबंध का संबंध योग से है और स्थितिबंध तथा अनुभागबंध का संबंध कषाय से है। जब कषाय की अवस्थिति के साथ लेश्या कार्य करती है तो कर्म का बन्धन प्रगाढ़ होता है और जब वह केवल योग के साथ सक्रिय होती है तो स्थिति और अनुभाग की दृष्टि से कर्म का बन्धन नाम मात्र का होता है। 13वें गुणस्थानवर्ती वीतराग पुरुषों के मात्र दो समय की स्थिति वाली ईर्यापथिक क्रिया का ही बंध होता है। लेश्या और योग के सन्दर्भ में विमर्श लेश्या और योग के पारस्परिक संबंध पर जैन साहित्य में काफी ऊहापोह है। लेश्या के साथ योग का क्या संबंध है ? इस सन्दर्भ में जैनाचार्यों ने अपनी-अपनी मान्यताओं की समीक्षा की है। फिर भी निष्कर्षतः कहना कठिन है कि लेश्या और योग का पारस्परिक संबंध क्या है ? सामान्यतः कहा जा सकता है कि जहाँ योग है वहाँ लेश्या है, जहाँ लेश्या वहाँ योग है। फिर भी दोनों भिन्न-भिन्न तत्त्व हैं। भावत: लेश्या परिणाम तथा योग परिणाम जीव परिणामों में भिन्न-भिन्न बतलाए गए हैं। अत: भिन्न है। द्रव्यत: मनोयोग तथा वाक्योग के पुद्गल चतु:स्पर्शी है तथा काययोग के पुद्गल स्थूल है । लेश्या के पुद्गल अष्टस्पर्शी हैं लेकिन सूक्ष्म हैं, क्योंकि लेश्या के पुद्गलों को भावितात्मा अनगार न जान सकता है और न देख सकता है। अत: द्रव्यतः भी योग और लेश्या भिन्न-भिन्न है। लेश्या परिणाम जीवोदय निष्पन्न है और योग वीर्यान्तराय के क्षय क्षयोपशमजनित है।' कई आचार्यों का कहना है कि योग परिणाम ही लेश्या है, क्योंकि केवली शुक्ललेश्या परिणाम में विहरण करते हुए अवशिष्ट अन्तर्मुहूर्त में योग का निरोध करते हैं तभी वे अयोगीत्व और अलेश्यत्व को प्राप्त होते हैं, अतः कहा जा सकता है कि योग परिणाम ही लेश्या है। वह योग भी नामकर्म की विशेष परिणति रूप ही है। औदारिक आदि शरीरों द्वारा मन, वचन और काय वर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण कर जो मानसिक , वाचिक एवं शारीरिक प्रवृत्ति की जाती है, वही क्रमश: मनोयोग, वचनयोग तथा काययोग है और वही लेश्या है। ___ जीव परिणामों का वर्णन करते हुए ठाणांग के टीकाकार लेश्या परिणाम के बाद योग परिणाम क्यों आता है, इसका कारण बतलाते हुए कहते हैं कि योग परिणाम होने से लेश्या 1. प्रज्ञापना 3/1, पृ. 409; 2. अनुयोगसूत्र 127, पृ. 111; 3. ठाणं 1/51 की टीका Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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