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लेश्या और मनोविज्ञान
दोनों में निमित्त-नैमित्तिक भाव सतत् चलता रहता है। भावकर्म से द्रव्यकर्म का संग्रह होता है और द्रव्यकर्म के उदय से भावकर्म में तीव्रता आती है।
जीव परिपाकहेउं कम्मत्ता पोग्गला परिणमंति ।
पोग्गल-कम्म-निमित्तं जीवो वि तहेव परिणमइ ॥' कर्मबन्ध के संबंध में प्रज्ञापना के रचनाकार आचार्य श्यामार्य का मत ध्यातव्य है। कर्मबंध की प्रक्रिया के संबंध में गौतम के प्रश्न को समाहित करते हुए भगवान महावीर कहते हैं - गौतम! ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से दर्शनावरणीय कर्म का बंध होता है। दर्शनावरणीय कर्म के उदय से दर्शन मोह का बंध होता है। दर्शनमोह के उदय से मिथ्यात्व का बंध होता है। मिथ्यात्व के उदय से अष्टविध कर्म प्रकृतियों का बंध होता रहता है।
आचार्य विद्यानन्दी अपनी कृति अष्टसहस्त्री में कर्म के संबंध में एक महत्वपूर्ण तथ्य उद्घाटित करते हैं। द्रव्यकर्म आवरण है और भावकर्म दोष । द्रव्यकर्म जहाँ हमारी आत्मिक शक्ति के प्रस्फुटन में आवरणभूत होता है वहीं भावकर्म उसे दूषित कर देता है। ___ कषाय कर्मों का संश्लेषक है। जिस प्रकार सूखे वस्त्र पर धूलिकण संगृहीत नहीं होते, वे उसका स्पर्श कर तत्काल विलग हो जाते हैं उसी प्रकार कषाय के अभाव में कर्म चेतना का स्पर्श कर उससे अलग हो जाते हैं । इस संश्लेषक के कारण ही कर्मबन्ध की दो अवस्थाएँ बनती हैं। सकषाय अवस्था का कर्मबन्ध सांपरायिक बंध कहलाता है और निष्कषाय अवस्था के बंध को ईर्यापथिक नाम से जाना जाता है। ईर्यापथिक कर्मबन्ध की स्थिति बहुत स्वल्प होती है। पहले क्षण में बँधता है और दूसरे क्षण में विलग हो जाता है।
आत्मा और कर्म का संश्लेष चतुआयामी है। कर्म प्रकृति, स्थिति अनुभाग और प्रदेश इन चार आयामों में अपना कार्य पूरा करता है।' प्रकृतिबंध - सामान्य रूप से गृहीत कर्म पुद्गलों का स्वभाव निर्धारण है। जैसे
__ये कर्मज्ञान के आवारक हैं, ये दर्शन के आवारक हैं , इत्यादि। स्थितिबंध - आत्मा के साथ कर्मों के संबद्ध रहने की अवधि का निर्धारण। अनुभागबन्ध - कर्मों के फल देने की शक्ति का निर्धारण। प्रदेशबन्ध - आत्मा और कर्म की संयोगावस्था में कर्मपुद्गल अविभक्त होते
हैं, तत्पश्चात् वे आत्मप्रदेशों के साथ एकीभूत हो जाते हैं। यह एकीभाव की अवस्था का प्रदेशबन्ध है।
1. प्रवचनसार वृत्ति, पृ. 455; 2. प्रज्ञापना 23/3, उवंगसुत्ताणि, खण्ड-2, पृ. 284 3. अष्टसहस्री, पृ. 51; 4. तत्त्वार्थ सूत्र 6/5; 5. ठाणं, 4/290
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