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________________ लेश्या का सैद्धान्तिक पक्ष 23 भन्ते ! वह किन कारणों से कर्म बाँधता है ? गौतम! उसके दो हेतु हैं - प्रमाद और योग। भन्ते! प्रमाद किससे उत्पन्न होता है ? योग से। भन्ते! योग किससे उत्पन्न होता है ? वीर्य, पराक्रम, प्रवृत्ति से। वीर्य किससे उत्पन्न होता है ? शरीर से। भन्ते ! शरीर किससे उत्पन्न होता है ? जीव से। प्रस्तुत संवाद से जहाँ एक ओर हम कर्मशरीर के संपोषण की प्रक्रिया को समझते हैं वहाँ दूसरी ओर जीव और कर्म के अनादि संबंध की बात भी बहुत सरलता से गम्य होती है। आत्मा और शरीर के संयोग से उत्पन्न होने वाले वीर्य को करणवीर्य या क्रियात्मक शक्ति कहा गया है। प्रत्येक शरीरधारी प्राणी अपनी सारी क्रियाएँ इसी शक्ति के आधार पर सम्पादित करता है। हमारे चारों ओर विविध प्रकार के पुद्गल फैले हुए हैं। औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण, मन, वचन एवं श्वासोच्छवास वर्गणा - ये आठ मुख्य संकाय हैं । प्रस्तुत प्रकरण में विवेच्य विषय कार्मण वर्गणा है। हम इसे द्रव्य कर्म भी कह सकते हैं। ___ कार्मण वर्गणा के पुद्गलों का यह वैशिष्ट्य है कि जब वे चेतना के द्वारा आकृष्ट हो उसके साथ एकमेक हो जाते हैं तो उनमें शक्ति विशेष का संचार हो जाता है। वे आवरण, विकार, प्रतिघात एवं शुभ-अशुभ रूप में निरन्तर हमारी चेतना को प्रभावित करते रहते हैं जबकि अन्य वर्गणाओं के पुद्गलों में यह शक्ति नहीं होती। जैन-दर्शन के अनुसार कर्म वर्गणाएँ आठ प्रकार की हैं - जो ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अंतराय, वेदनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र नामों से पहचानी जाती हैं। द्रव्यकर्म के कारण आत्मा जिस अवस्था में परिणत होता है वह भावकर्म है। वस्तुत: भावकर्म ही द्रव्यकर्म का संग्राहक है पर द्रव्यकर्म का कार्य आकर्षण मात्र के साथ ही समाप्त नहीं हो जाता। वह फिर नये भावकर्म के लिए ऊर्वरा तैयार कर देता है । इस प्रकार 1. भगवती 1/140-45, पृ. 28 2. वर्गणा - सामान्यतः समान गुण व जाति वाले समुदाय को वर्गणा कहते हैं। 3. जैन सिद्धान्त दीपिका 4/2; 4. उत्तराध्ययन 33/2, 3 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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