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लेश्या और मनोविज्ञान वैज्ञानिकों ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि पेड़-पौधे इतने संवेदनशील होते हैं कि उनके पास आने वाले व्यक्ति के अच्छे-बुरे भावों से वे सिकुड़ते-फैलते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सारा जगत भावना द्वारा संचालित है। जब बादल आते हैं तब टिड्डी तेज बोलने लगती है। बादल को देख मयूर नृत्य करने लगते हैं। पक्षी अपना घोंसला सुरक्षित स्थान पर बनाने का प्रयत्न करते हैं। यह सारा प्रयत्न भावना के स्तर पर संभव है। ... लेश्या का मनोवैज्ञानिक अध्ययन करते समय आचरण के मूल स्रोतों की खोज में संज्ञा, कषाय, नोकषाय, मूलप्रवृत्ति आदि की चर्चा भी लेश्या की स्पष्टता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कर्मबन्धन और कर्ममुक्ति की प्रक्रिया में अचेतन मन से जुड़े कुछ उदाहरण इस बात के साक्षी हैं कि केवल क्रिया से ही नहीं, सिर्फ सोचने मात्र से भी प्राणी किस प्रकार कर्म संस्कारों का अर्जन कर लेते हैं।
लेश्या से जुड़ी जन्म-मृत्यु और आयुष्यबन्ध की सूक्ष्म व मनोवैज्ञानिक व्याख्या स्वयं में जागरण की प्रेरणा है। सिद्धान्त कहता है कि जिस लेश्या में प्राणी मरता है उसी लेश्या में फिर जन्म लेता है। इसलिए अच्छे भावी जीवन की आकांक्षा रखने वाले का शुभ भावों/ लेश्याओं में रहना जरूरी है, क्योंकि मौत किसी भी क्षण हो सकती है।
लेश्या का मनोवैज्ञानिक पहलू मनुष्य की सूक्ष्म चेतना के स्तर पर घटित होने वाले भावों की व्याख्या करता है। शुभ-अशुभ भावों के आधार पर व्यक्तित्व कैसे बनेगा, किस भाव के बदलने से व्यक्तित्व रूपान्तरित होगा, यह सब कुछ लेश्या पर निर्भर है। प्रस्तुत अध्याय में मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में लेश्या को विविध कोणों से विश्लेषित करने का प्रयास किया गया है। लेश्या और रंग मनोविज्ञान ___ सम्पूर्ण सृष्टि में ऐसा कुछ भी नहीं जिसका कोई रंग न हो। जड़ और चेतन में रंगों का वैविध्य और वैचित्र्य इस बात का प्रतीक है कि रंग हमारे चारों ओर घिरी एक सार्वभौमिक सत्ता है। रंग जीवन से सीधा जुड़ा है। यह शरीर और मन को ही नहीं, चेतना के सूक्ष्म स्तर तक को प्रभावित करता है। यद्यपि सैद्धान्तिक स्तर पर लेश्या के द्रव्य/ पौद्गलिक एवं भाव/चैतसिक दोनों पक्षों का सूक्ष्म व गहन विश्लेषण उपलब्ध है किन्तु रंगों के मनोविज्ञान के साथ लेश्या की प्रस्तुति इस बात को स्पष्टता देती है कि रंग मनोदशाओं को किस तरह प्रभावित करता है और व्यक्ति के बदलाव व चिकित्सा में किस प्रकार सशक्त भूमिका निभाता है। __ वर्तमान में बहुचर्चित रंग की विचारणा का मूलस्रोत भारतीय धर्म, दर्शन, साहित्य, कला और संस्कृति में देखा जा सकता है। तत्त्वविदों और मानसशास्त्रियों ने जीवन के साथ रंग का गहरा संबंध माना है। लोक-जीवन और परम्पराओं से जुड़े समस्त पौराणिक, धार्मिक एवं सामाजिक अनुष्ठानों, रीति-रिवाजों में मनुज मन के भावों और रुचियों को दर्शाने के लिए विशिष्ट रंगों का चयन किया गया है।
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