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________________ प्राथमिकी 1. अध्यवसाय का स्तर - यह कार्मण शरीर/अतिसूक्ष्म शरीर के साथ काम करता है। 2. लेश्या का स्तर - यह तैजस शरीर/विधुत शरीर के साथ काम करता है। 3. स्थूल चेतना का स्तर - यह औदारिक शरीर/स्थूल शरीर के साथ काम करता है। ___लेश्या बाहरी-भीतरी/स्थूल-सूक्ष्म दोनों स्तरों से जुड़ी है। निम्न तालिका द्वारा इसे बहुत स्पष्टता से समझा जा सकता है : __ प्राणी कर्म शरीर, तैजस शरीर मूल आत्मा चैतन्य के स्पन्दन कषाय अध्यवसाय चित्त ज्ञान लेश्या भावधारा ग्रंथि-तंत्र नाड़ी-तंत्र क्रिया-तंत्र ( योग-तंत्र) चिन्तन, वाणी, व्यवहार अध्यवसाय कर्म संस्कारों का मूल स्रोत है। इसे मनोविज्ञान में अदस मन (Id) कहा जा सकता है। मन केवल उन प्राणियों में होता है जिनके सुषम्ना और मस्तिष्क है पर अध्यवसाय सभी प्राणियों में होता है। वनस्पति जीव में भी प्रशस्त/अप्रशस्त अध्यवसाय होते हैं। अध्यवसाय कर्मबन्ध का कारण है इसलिए यह मनशून्य, वचनशून्य और क्रियाशून्य असंज्ञी जीवों में भी पाया जाता है। अध्यवसाय इतना सूक्ष्म है कि इसे सिर्फ तरंग रूप में जाना जा सकता है। तरंग जब सघन होती है तब भाव बनती है और भाव लेश्या में पैदा होते हैं। __ लेश्या तैजस शरीर के साथ सक्रिय होती है। यह भीतरी भावों को अन्त:स्रावी संस्थान के माध्यम से क्रियातंत्र द्वारा अभिव्यक्त करती है। लेश्या मुख्य द्वार है पुद्गलों के भीतर जाने का और भावों के बाहर आने का। __ लेश्या अध्यवसाय का हेतु है। लेश्या का भावचक्र प्रतिक्षण गतिशील रहता है। जब व्यक्ति सोता है तब भी उसकी शुभ-अशुभ लेश्या क्रियाशील रहती है। इसकी यह क्रियाशीलता सम्पूर्ण प्राणी जगत, यहां तक की वनस्पति जीव तक में पाई जाती है। Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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