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प्राथमिकी
13 जैन साहित्य में लेश्या के रंगों और भावों को प्रतीकात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया। आगम साहित्य का प्रसिद्ध छह मित्रों और फल से लदे वृक्ष के प्रति विभिन्न दृष्टिकोण वाला कथानक मन की भावदशा का सही चित्रण प्रस्तुत करता है। लेश्या के सन्दर्भ में ही नहीं, पंचतत्त्वों, ग्रहों, राशियों, रत्नों आदि के साथ भी जुड़ी रंगों की प्रतीकात्मक अवधारणा उपलब्ध होती है। शरीर के विभिन्न अंगों, ग्रंथियों और योगसाहित्य के चक्रों के भी रंग निर्धारित किए गए हैं। यूनानवासियों ने तो मनोवैज्ञानिक दृष्टि से रंगों के साथ युगों का
आरोहण/अवरोहण क्रम जोड़कर जीवन के साथ रंगों का तादात्म्य संबंध तक प्रकट किया है।
रंगों के आधार पर मनुष्य की जाति, गुण, स्वभाव, रुचि और आदर्श आदि की व्याख्या करने की परम्परा सदा से रही है। तंत्र-मंत्र शास्त्रियों, भौतिकवादियों, शरीर शास्त्रियों एवं मनोवैज्ञानिकों के अध्ययन के सम्मिलित निष्कर्ष यह सिद्ध करते हैं कि रंग चेतना के सभी स्तरों को प्रभावित करता है। रंग की विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा किसी अज्ञातरूप में पिट्यूटरी, पीनियल ग्रंथियों तथा मस्तिष्क की गहराई में विद्यमान हाइपोथेलेमस तक को प्रभावित करती है। वास्तव में रंग हमारे मन, विचार, भाव और आचरण पर असर डालते हैं।
"रंगों का व्यक्तित्व पर प्रभाव' इस विषय पर चिन्तन करते समय ऐसा प्रतीत होता है कि आज के रंग मनोविज्ञान में लेश्या के संवादी सूत्र उपलब्ध होते हैं। लेश्या की शुभता/ अशुभता, रुक्षता/स्निग्धता, शीतता/उष्णता, प्रशस्तता/अप्रशस्तता व्यक्तित्व की व्याख्या करती है। कृष्ण, नील, कापोत लेश्या के वर्ण आदि प्रशस्त चमकदार हैं तो वे अच्छे माने जाते हैं। ये ही रंग जब अप्रशस्त/धुंधले हैं तो अशुभ माने जायेंगे। व्यक्तित्व की शुभता/ अशुभता लेश्या के वर्णों की चमक/धुंधलेपन के द्वारा अभिव्यक्त होती है।
जैन आगमों में की गई लेश्या की चर्चा तात्त्विक/दार्शनिक तो है ही, मनोवैज्ञानिक भी है। रंग मनोविज्ञान को अगर लेश्या अवधारणा के आलोक में देखा जाए तो कई नई दृष्टियां प्राप्त हो सकती हैं । शास्त्रों में लेश्या और उसके वर्गों के प्रसंग में व्यक्ति के मन का पारदर्शी चित्रण उपलब्ध होता है। कृष्ण, नील, कापोत रंग प्रधान अशुभ लेश्याओं में जीने वाला व्यक्ति बुरा सोचेगा, बुरा कहेगा, बुरा सुनेगा और बुरा ही कर्म करेगा जबकि लाल, पीला और श्वेत वर्ण वाली शुभ लेश्याओं में जीने वाला व्यक्ति सदैव अच्छा ही सोचेगा, कहेगा, सुनेगा और करेगा। प्रतिक्षण बदलने वाली लेश्यायें हमारे भावों के आरोह-अवरोह की सटीक व्याख्या करती हैं।
अच्छी-बुरी लेश्याओं में जीने का व्यक्ति स्वयं जिम्मेदार है। हमारे आस-पास पौद्गलिक रंग, रस, गन्ध, स्पर्श बिखरे पड़े हैं। ये शुभ भी हैं और अशुभ भी हैं। लेश्या की शुभता-अशुभता में भी बहुत अंतर है और यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह किस तरह के परमाणु को ग्रहण करता है ? कैसा रंग पसन्द करता है और कैसा अपना व्यक्तित्व निर्माण करना चाहता है ?
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