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________________ जैन साधना पद्धति में ध्यान 185 संग्रह है। आत्मा मूलशक्ति का स्रोत है। सूक्ष्म शरीर आत्मा की ज्ञान, दर्शन और शक्ति रूप चेतना को आवृत्त करता है। सूक्ष्म शरीर है कर्म शरीर । कर्म शरीर में वासनाएं, संस्कार, आवेग और कषाय रहते हैं। स्थूल शरीर में स्वयं की कोई वासना, क्रोध, मोह नहीं होता। इसमें सूक्ष्म शरीर द्वारा ये सब संप्रेषित किया जाता है और यह अभिव्यक्ति का केन्द्र बनता है। शरीर प्रेक्षा का क्रम सामान्यत: इस प्रकार निर्धारित किया गया है -- 1. शरीर प्रेक्षा में सबसे पहले हमें त्वचा के बाह्य संवेदनों की अनुभूति या दर्शन होगा। जैसे - अपने वस्त्रों से शरीर का स्पर्श, बाह्य उष्मा, पसीना, खुजलाहट आदि। 2. अपने मांसपेशीय हलन-चलन से उत्पन्न होने वाले संवेदनों का दर्शन। 3. अपने आन्तरिक अवयवों द्वारा उत्पन्न संवेदनों का बोध। 4. अपने नाड़ी तंत्र के भीतर प्रवहमान विद्युत आवेगों के द्वारा उत्पन्न सूक्ष्म प्रकम्पनों का बोध, समूचे शरीर में निरन्तर प्रवहमान प्राणधारा के प्रकम्पनों का अनुभव। शरीर प्रेक्षा में साधक स्थूल से सूक्ष्म तक प्रेक्षा करता है। शरीर में प्राण का प्रवाह है। जब वह असन्तुलित होता है तो बीमारियां पैदा होती हैं। शरीर चैतन्यकेन्द्र है, जब तक ये मलिन होते हैं ज्ञान का अवरोध रहता है। शरीर में आनन्द केन्द्र है। जब तक यह नहीं जागता, सुख-दुःख का द्वन्द्व नहीं मिटता। शरीर प्रेक्षा से तीनों समस्याएं समाधान पा जाती हैं। शरीर प्रेक्षा के महत्त्वपूर्ण परिणाम हैं - 1. प्राणप्रवाह का सन्तुलन 2. रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास 3. जागरूकता का अभ्यास 4. प्रतिस्त्रोतगामिता 5. नई आदतों का निर्माण 6. शरीर का कायाकल्प। 1. आचार्य महाप्रज्ञ, महावीर की साधना का रहस्य, पृ. 34-35 2. अप्पाणं सरणं गच्छामि, पृ. 262 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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