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लेश्या और मनोविज्ञान
प्रेक्षाध्यान पद्धति में शरीर प्रेक्षा को बहुत महत्त्व दिया गया है। उत्तराध्ययन में कहा गया कि शरीर नौका है। जीव नाविक है और संसार समुद्र है। इस शरीर रूपी नौका से संसार समुद्र को तैरा जा सकता है। शरीर के माध्यम से चैतन्य अभिव्यक्त होता है । चैतन्य पर आए हुए आवरण को दूर करने में यह सशक्त माध्यम बनाया जा सकता है।
शरीर और आत्मा भिन्न-भिन्न है पर तात्त्विक दृष्टि से आत्मा और देह के मध्य भिन्नत्व और एकत्व दोनों को स्वीकार किया गया है। प्रश्न पूछा गया है कि जीव शरीर है या आत्मा, तो महावीर ने कहा - जीव शरीर भी है और आत्मा भी है। आचार्य कुन्दकुन्द ने आत्मा और शरीर के एकत्व और भिन्नत्व को स्वीकार करते हुए कहा कि व्यावहारिक दृष्टि से आत्मा और देह एक ही है और निश्चय नय की दृष्टि से दोनों एक नहीं है। आत्मा और शरीर का एकत्व स्वीकार किए बिना साधना सम्भव नहीं और भिन्न माने बिना अनासक्ति और भेदज्ञान की संभावना नहीं रहती। यही कारण है कि साधना के क्षेत्र में दोनों दृष्टियां महत्त्वपूर्ण हैं।
भगवान महावीर ने कहा - से पुव्वं पेयं पच्छा पेयं भेउर-धम्मं विद्धंसण धम्म अधुवं । अतितियं असासयं चयावचइयं विपरिणाम धम्मं पासह एवं रूपं ॥
तुम इस शरीर को देखो। यह पहले या पीछे एक दिन अवश्य छूट जाएगा। विनाश और विध्वंस इसका स्वभाव है। यह अध्रुव, अनित्य और अशाश्वत है। इसका उपचय और अपचय होता है। इसकी विविध अवस्थाएं होती हैं। __ शरीर प्रेक्षा जैन आगम साधना पद्धति है। इस सन्दर्भ में शरीर के ऊर्ध्व, मध्यम और अधोभाग का भी अपना महत्त्व है। जैन परम्परा में लोक को समझाने के लिए पुरुष की कल्पना की गई है। पुरुष के तीन भाग होते हैं - ऊर्ध्व, मध्यम और अधः। इसी प्रकार लोक के भी तीन भाग होते हैं । सारा भूगोल इस माध्यम से जैन साहित्य में वर्णित है। यहां लोक का अर्थ है - शरीर। भगवान महावीर के ध्यान के प्रसंग में आगम कहता है कि वे तीनों भागों पर विशेष ध्यान किया करते थे। आचारांग सूत्र में कहा है - जो आयतचक्षु होता है, संयमचक्षु होता है, जो लोकदर्शी होता है, जिसकी खुली आंखें एक बिन्दु पर स्थित है, वह ऊर्ध्वलोक को भी देखता है, मध्यलोक को भी देखता है और अधोलोक को भी देखता है।
आत्मा, सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर तीनों को जानना अपेक्षित है । स्थूल शरीर वह है जिसमें सबकुछ प्रकट होने की क्षमता है। सूक्ष्म शरीर वह है जिसमें क्षमताओं का
1. उत्तराध्ययन 23/73;
2. समयसार 26;
3. आयारो 2/125
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