________________
156
लेश्या और मनोविज्ञान
आत्मा, कुल, गण, शासन - सबकी प्रभावना होती है। * आलस्य त्यक्त होता है। * कर्म-मल का विशोधन होता है। * दूसरों को संवेग उत्पन्न होता है। * मिथ्यादृष्टियों में भी साम्यभाव उत्पन्न होता है। * मुक्ति का मार्ग प्रकाशन होता है।
तीर्थंकर आज्ञा की आराधना होती है।
देह-लाघव प्राप्त होता है। * शरीर-स्नेह का शोषण होता है।
राग आदि का उपशम होता है। * आहार की परिमितता होने से निरोगता बढ़ती है। * संतोष बढ़ता है।
आन्तरिक तपस्या आत्मशोधन के लिए महत्वपूर्ण है, इसके द्वारा जीवन में निम्न शीलगुणों का वैशिष्ट्य आता है :
भावशुद्धि, चंचलता का अभाव, शल्य-मुक्ति, धार्मिक-दृढ़ता आदि प्रायश्चित्त के परिणाम हैं । ज्ञान-लाभ, आचार-विशुद्धि, सम्यक्-आराधना आदि विनय के परिणाम हैं।
चित्त-समाधि का लाभ, ग्लानि का अभाव, प्रवचन-वात्सल्य आदि वैयावृत्य के परिणाम हैं।
प्रज्ञा का अतिशय, अध्यवसाय की प्रशस्तता, उत्कृष्ट संवेग का उदय, प्रवचन की अविच्छिन्नता, अतिचार-विशुद्धि, सन्देह-नाश, मिथ्यावादियों के भय का अभाव आदि स्वाध्याय के परिणाम हैं।
कषाय से उत्पन्न ईर्ष्या, विषाद, शोक आदि मानसिक दु:खों से बाधित न होना; सर्दीगर्मी-भूख-प्यास आदि शरीर को प्रभावित करने वाले कष्टों से बाधित न होना ध्यान के परिणाम हैं।
निर्ममत्व, निर्भयता, जीवन के प्रति अनासक्ति, दोषों का उच्छेद, मोक्ष-मार्ग में तत्परता आदि व्युत्सर्ग के परिणाम हैं। मूर्छा का आवर्त टूटे ____ परिवर्तन की प्रक्रिया में आत्म परिणामों की पवित्रता जरूरी है। इस पवित्रता में सबसे बड़ा बाधक तत्त्व है - मूर्छा । लेश्या विशुद्धि में मूर्छा का आवर्त टूटता है । मूर्छा के कारण
1. मूलाराधना 3/237-244; 3. ध्यानशतक, 105-106%;
2. तत्वार्थ 9/22-25, श्रुतसागरीय वृत्ति 4. तत्वार्थ 9/26, श्रुतसागरीय वृत्ति
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org