SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राथमिकी निर्ग्रन्थों का लेश्या सिद्धान्त एक किसी प्राचीनतर मान्यता के आधार पर उत्पन्न हुए हैं। यद्यपि आजीवकों की मान्यता सहज और सरल है जबकि लेश्या की मान्यता काफी विकसित भूमिका की ओर निर्देश करती है। गोशालक के सिद्धान्तों का विशेष वर्णन कहीं उपलब्ध न होने के कारण अभिजाति की मान्यता को विशेष रूप से अध्ययन करने का कोई साधन उपलब्ध नहीं है, इसके विपरीत लेश्या विषयक जैनों की मान्यता को जैन-कर्मग्रंथों के आधार पर हम विशेष रूप से जान सकते हैं। . अभिजाति और लेश्या के परस्पर प्रभावित होने के संदर्भ में कहा जा सकता है कि वर्ण-विभाजन की दोनों ही पद्धतियां किसी ऐसे प्राचीनतर विचार पद्धति से ली गई हैं जो उस काल में संन्यासी वर्ग में अधिक प्रचलित रही हो, क्योंकि प्राचीन साहित्य इस बात की सूचना देते हैं कि उस समय जीवन के अच्छे-बुरे विचारों व परिणामों को वर्गों में वर्गीकृत किया जाता था। वर्ण के आधार पर मनुष्य के गुणों की श्रेणियों का यह निर्धारण न केवल श्रमण (जैन, बौद्ध आदि के) ग्रंथों में अपितु अन्य ग्रंथों में भी द्रष्टव्य है। ___महाभारत में उपलब्ध एक संवाद में सनत्कुमार दानवेन्द्र वृत्रासुर से कहते हैं - प्राणियों के छह प्रकार के वर्ण हैं - कृष्ण, धूम्र, नील, रक्त, हारिद्र और शुक्ल। कृष्ण, धूम्र और नील वर्ण का सुख मध्यम होता है। रक्त वर्ण अधिक सहन करने योग्य होता है। हारिद्र वर्ण सुखकर होता है और शुक्लवर्ण उससे भी अधिक सुखकर होता है। इतना ही नहीं, महाभारतकार ने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र को भी वर्गों से परिभाषित किया है। __उच्च-नीच गति की व्याख्या करते हुए कृष्ण वर्ण वाले की गति नीच बताई गई है। जिन निकृष्ट कर्मों से जीव नरक में जाता है वह उन कर्मों में सतत आसक्त रहता है। जो जीव नरक से निकलते हैं उनका वर्ण धूम्र होता है। मानव जाति का रंग नीला है । देवों का रंग रक्त है, वे दूसरों पर अनुग्रह करते हैं। जो विशिष्ट देव होते हैं उनका रंग हारिद्र है। जो महान् साधक है उनका वर्ण शुक्ल है। व्यासदेव ने यह भी लिखा है कि दुष्कर्म करने वाला मानव वर्ण से परिभ्रष्ट हो जाता है और पुण्य कर्म करने वाला मानव वर्ण के उत्कर्ष को प्राप्त होता है। ___ लेश्या और महाभारत का वर्ण-निरूपण में बहुत साम्य है। गीता में भी श्रीकृष्ण ने गति के कृष्ण और शुक्ल दो विभाग किए। कृष्ण गति वाला पुन:-पुनः जन्म-मरण करता है, शुक्ल गति वाला जन्म और मरण से मुक्त हो जाता है। ___धम्मपद में धर्म के दो विभाग किये हैं - कृष्ण और शुक्ल। पंडित मानव को कृष्ण धर्म का परित्याग कर शुक्लधर्म का पालन करना चाहिए। महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में 1. महाभारत, शांतिपर्व 280/33; 3. वही, 280/34-47; 5. गीता 8/26; 2. वही, 12/186/5 4. वही, 291/4-5 6. धम्मपद, पंडितवग्ग, 19 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy