SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्तित्व और लेश्या हैं। समुचित मात्रा में स्राव निकलकर खून में मिलता है तब व्यक्तित्व सामान्य और संतुलित होता है। प्रत्येक ग्रंथि के स्राव हमारे शरीर एवं मन को प्रभावित करते हैं । स्रावों के कार्य, स्त्राव के अल्पस्रवण एवं अतिस्रवण से होने वाले प्रभाव व लक्षण भी व्यक्तित्व निर्माण में भूमिका निभाते हैं । डॉ. कॉप' ने प्रत्येक अन्तःस्रावी ग्रंथि की विस्तृत चर्चा करते हुए इन ग्रंथियों को विकसित करने के तरीकों की चर्चा भी की है। उनके अनुसार पीट्युटरी ग्रंथि को गहरे दीर्घ श्वास द्वारा उत्तेजित किया जा सकता है। नासिका एवं मस्तिष्क के नीचे के भाग में होने वाले रक्त संचरण के साथ इसका घनिष्ठ संबंध है। जो संगीत नासिका के निचले हिस्से एवं मस्तिष्क को प्रकम्पित करता है, वह पीट्युटरी ग्रंथि को उत्तेजित करता है। प्राण शक्ति को उत्तेजित करने के लिए पुराने लोगों में पवित्र शब्दों के उच्चारण की परम्परा भी रही है । 135 थाइराइड ग्रंथि संवेगों का स्थान है। इसके विकास के लिए शांति एवं संतुलन आवश्यक है। स्थिर (Static) विद्युत एवं एक्स-रे द्वारा थाइराइड के कार्य को उत्तेजित एवं नियन्त्रित किया जा सकता है। थाइराइड के स्राव द्वारा एड्रीनल ग्रंथियां प्रेरित होती हैं एवं शक्ति प्राप्त करती हैं। एड्रीनल के स्वस्थ विकास के लिए थाइराइड ग्रंथि का सामान्य होना और क्रोध और भय को नियंत्रित रखना आवश्यक है । थाइमस एवं पीनियल ग्रंथियों के सक्रिय होने से व्यक्ति का यौवन बना रहता है। काम ग्रंथियों के सम्यग् विकास एवं कार्यक्षमता द्वारा तारुण्य सुरक्षित रह सकता है। काम की ऊर्जा को कई तरह से अभिव्यक्त किया जा सकता है, जैसे- खेल, अध्ययन, , चित्रकारी, कठिन श्रम, धार्मिक उत्साह, पारिवारिक जीवन आदि । किसी भी तरह की उन्नति के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति की शारीरिक रचना एवं शारीरिक क्रियाएं मानसिक एवं आध्यात्मिक अभिव्यक्ति की तरह पवित्र रहें। शुद्ध आत्मा शुद्ध शरीर में ज्यादा अच्छी तरह कार्य कर सकती है । अगर शारीरिक एवं मानसिक ऊर्जा को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अवकाश मिलता रहे तो अन्तःस्रावी ग्रंथियों का सामान्य एवं सहज विकास होगा। सामान्य स्थितियों में ही ग्रंथियों का सामान्य विकास सम्भव है। डॉ. कॉप ने अन्तःस्रावी ग्रंथियों के आधार पर विभिन्न प्रकार के व्यक्तित्व की भी चर्चा की है । अन्तःस्रावी ग्रंथि तंत्र के क्षेत्र में पिछले वर्षों में हुई उल्लेखनीय प्रगति ने अब यह सिद्ध कर दिया है कि हमारे सारे भावावेश, भावावेग, वृत्तियां और वासनाएं हमारे अन्तःस्रावी 1. M. W. Kapp, GLANDS : Our Invisible Guardians, p. 71, 72 2. Ibid, p. 51 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy