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________________ 136 लेश्या और मनोविज्ञान ग्रंथि तंत्र की ही अभिव्यक्तियां हैं । मनुष्य की जितनी आदतें बनती हैं, उनका उद्गम स्थान है - ग्रंथितंत्र । वृत्तियां न केवल कामनाओं को उत्पन्न करती हैं, अपितु उनकी पूर्ति के अनुरूप प्रवृत्ति के लिए व्यक्ति को बाध्य भी करती हैं। नाड़ी तंत्र में हमारी सारी वृत्तियां अभिव्यक्त होती हैं, अनुभव में आती हैं और फिर व्यवहार में उतरती हैं । स्नायु (Neurone) नाड़ी संस्थान की मूल इकाई है । इसी में सीखना, संवेग व चिन्तन जैसी अन्य मानसिक क्रियाओं के रहस्य छिपे रहते हैं। स्नायुप्रवाहों (Nerve impulses) को निश्चित स्थान तक ले जाने एवं समन्वय स्थापित करने में यह अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका रखता है । साधारण कोशिका की अपेक्षा स्नायु की बनावट थोड़ी भिन्न होती है। रचना और कार्य भिन्नता की अपेक्षा से स्नायु तीन प्रकार के होते हैं - 1. ज्ञानवाही स्नायु 2. कर्मवाही स्नायु 3. संयोजक स्नायु। स्नायु एवं संधिस्थल (Synapse) आदि से निर्मित नाड़ी संस्थान ही मानसिक क्रियाओं एवं व्यवहार की आधारशिला है। नाड़ी संस्थान के चार स्पष्ट कार्य हैं - (1) संज्ञापन (Communication) - सूचना को वातावरण से तथा शरीर के अन्दर से प्राप्त कर उसे मस्तिष्क को भेजना तथा मस्तिष्क से पुनः शरीर तक संदेश पहुंचाना। (2) समन्वय (Co-ordination) - शरीर के विभिन्न भागों की क्रियाओं को नियंत्रित करना ताकि व्यवहार समन्वित हो सके, न कि अलग-थलग या छोटे टुकड़ों में हो। (3) संचयन (Storing) - अनुभवों को संहिताबद्ध करना तथा उनका संचयन करना ताकि वह बाद में कार्य का आधार बन सके। (4) कार्ययोजन (Programming) - भविष्य के कार्यों की योजना बनाना। ये कार्य किस प्रकार नाड़ी संस्थान द्वारा सम्पादित होते हैं । इसे स्पष्ट जानने के लिए नाड़ी संस्थान के मुख्य भाग एवं उनके कार्यों को जान लेना भी जरूरी है : नाड़ी संस्थान के दो भाग हैं - 1. केन्द्रीय नाड़ी संस्थान; 2. परिधिगत नाड़ी संस्थान। केन्द्रीय नाड़ी संस्थान के भेद, मुख्य प्रभेद एवं उसके कार्य निम्न चित्र द्वारा स्पष्ट हैं। इसमें सुषुम्ना (Spinal) का केवल ऊपरी हिस्सा ही दिखाया गया है - Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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