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________________ व्यक्तित्व और लेश्या व्यवहार में देखा गया है कि सुन्दर व्यक्ति की लोग प्रशंसा करते हैं, आकर्षण में बंध जाते हैं, फलस्वरूप उनमें आत्मविश्वास, श्रेष्ठता के भाव, सुरक्षा, दायित्व आदि वांछित गुणों का विकास होता है जबकि कुरूप, विकलांग व्यक्ति स्वयं को भीतर से उदास, हतोत्साहित, हीनता से ग्रसित, उपेक्षित से मानने लगते हैं। ऐसे लोगों में निषेधात्मक भावों का प्राबल्य देखा जाता है । संस्थान का कारण व्यक्तित्व निर्धारक नामकर्म को माना गया है, जिसके उदय से औदारिक आदि शरीरों की आकृति बनती है । द्रव्यलेश्या भी नामकर्म का उदय है। आकृति के निर्माण में शुभ-अशुभ पुद्गलों का ग्रहण द्रव्यलेश्या के अधीन है। संहनन के साथ लेश्या का सीधा संबंध है। उत्तम संहनन वाला शुक्ल लेश्यावान होगा। ध्यान के लिए उत्तम संहनन एक अनिवार्यता मानी गई है। षट्खण्डागम की धवला टीका में लिखा है कि शुक्ल लेश्यावान ऋषभनाराच संहनन का स्वामी, क्षीणकषायी जीव की एकत्व वितर्क अविचार ध्यान का स्वामी होता है । शरीर रचना के सन्दर्भ में मनोवैज्ञानिकों ने भी व्यक्ति की चित्तवृत्ति और शारीरिक रचना देखकर उसके स्वभाव की व्याख्या करने का प्रयत्न किया है। इस सन्दर्भ में जर्मन मनोचिकित्सक क्रैशमर एवं कोलम्बिया विश्वविद्यालय के प्राध्यापक शैल्डन का नाम विशेष उल्लेखनीय है। उनके अध्ययन निष्कर्ष यहां प्रस्तुत किए जा रहे कैशमर (Kretchmer) शारीरिक रचना, चित्त-प्रकृति नाम 1. एस्थेनिक Jain Education International (Asthenic ) 2. एथलेटिक (Athletic) 3. पिकनिक (Pyknic) 4. डिस्प्लास्टिक (Dysplastic) 1. धवला 13/5, 4, 26/79/12 शरीर रचना दुबले-पतले, छोटे कन्धे कमर पतली, कन्धे चौड़े, सौष्ठव गठन मोटे, पेट बाहर निकला हुआ, मुंह गोल शारीरिक अनुपात विषम 133 For Private & Personal Use Only - चित्त प्रकृति आत्मकेन्द्रित, भावुक, स्वप्नदर्शी, बौद्धिक, शांत, एकांतप्रिय व्यवहार कुशल, सामाजिक क्रियाशील खुशमिजाज, मिलनसार www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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