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________________ लेश्या और मनोविज्ञान पता चलता है कि वहां कुछ कमरों में सूर्य की किरण को स्पेक्ट्रम के सात रंगों में विभाजित करने की व्यवस्था रही है। इन रंगों का प्रयोग चिकित्सा और पूजा के लिये किया जाता था । मिस्रवासी रोगियों को सूर्य किरण में कुछ समय रखे पानी को पिलाने का तरीका भी प्रयोग में लाते थे। यह प्रयोग भारत, चीन, दक्षिण अमेरिका आदि में भी प्रचलित हुआ । 108 - रंग चिकित्सा में चीनवासियों का भी विशेष योगदान रहा है। चीनी डॉक्टर कई तकनीक प्रयोग में लाते थे, जिनमें से रंग भी एक था। उन्होंने पांच रंगों का चयन किया - हरा, पीला, लाल, सफेद और काला । उनको यह भी ज्ञान था कि किस मौसम में, किस रोग का, किस रंग से उपचार करना चाहिए। बसन्त मौसम में यकृत से संबंधित रोगों का हरे रंग से, ग्रीष्म ऋतु में हृदय से संबंधित रोगों का लाल रंग से, पतझड़ में फेफड़ों से संबंधित रोगों का सफेद रंग तथा शीत में गुर्दे से संबंधित रोगों का नारंगी रंग से उपचार करने की पद्धति थी । प्रकाश और रंग शरीर में किस प्रकार प्रवेश करते हैं तथा कार्य करते हैं, यह निश्चित रूप से जानना आसान नहीं । रंग वैज्ञानिकों ने घरों, शैक्षणिक संस्थानों एवं औद्योगिक क्षेत्रों में प्रयोग करके रंगों के शारीरिक व मानसिक प्रभावों पर ध्यान दिया है। इन प्रभावों का कारण यह है कि रंग ऊर्जा है। यह प्रकाश के रूप में इलेक्ट्रो-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम का एक हिस्सा है। जब आंखों पर बदलते हुए रूपों में इसका प्रभाव पड़ता है तो यह मांसपेशियों से संबंधित मानसिक और स्नायविक क्रियाशीलता को प्रभावित करता है और अन्तःस्रावी ग्रंथियों के स्राव को नियन्त्रित करता है । ग्रंथि यकृत थाइरॉइड स्वर संबंधी आंख की पुतली के अन्दर की झिल्ली क्लोम ग्रंथि थाइमस पीट्यूटरी पीनियल पैराथाइरॉइड प्लीहा गुर्दे प्रोस्टेट अण्डकोष अण्डाशय उत्तेजक रंग लाल नारंगी नारंगी पीला नींबू पीला नींबू पा Jain Education International हरा नीला For Private & Personal Use Only जामुनी बैंगनी 1. Linda Clark. The Ancient Art of Color Therapy, p. 65-66 लाल गुलाबी लाल गुलाबी तीव्र लाल तीव्र लाल' www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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