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लेश्या और मनोविज्ञान
रंगों का प्रतीकवाद ___ रंग की अवधारणा सदियों पुरानी है। प्रत्येक धर्म, दर्शन, साहित्य, कला, संस्कृति, परम्परा और लोकजीवन के हर पक्ष ने रंगों की भाषा में सृष्टि के स्थूल और सूक्ष्म जड़चेतन को अभिव्यक्ति दी है। देश और काल का सीमाओं से हटकर रंग के अस्तित्व को स्वीकार किया है। भले ही प्राचीन समय में रंगों का मनोविज्ञान इतना विकसित और विश्लेषित नहीं हो पाया हो किन्तु प्रतीकों में उभरता रंग-ज्ञान पूर्वी और पश्चिमी सभी देशों में अपना प्रभाव जमाए हुए है।
प्राचीन मिस्र में कुछ पवित्र पाण्डुलिपियां रंगों में लिखी गई थीं। उसके प्रतीकों की सही महत्ता केवल धर्मगुरु ही जानते थे। मिस्रवासियों और चीनी लोगों ने रंगों को विभिन्न देवताओं के साथ जोड़ा। उन्होंने बताया कि नीला, पीला और लाल रंग व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति को सक्रिय करने वाला है। नीली किरणों को मिस्र के देवता THOTH के साथ जोड़ा जो आध्यात्मिक केन्द्रों को जगाने वाला है। पीली किरणों के साथ देवता ISIS को जोड़ा गया। यह मनुष्य की मानसिक शक्तियों को उजागर करने वाला है। लाल किरणों को देवता OSIRIS से जोड़ा, जो मनुष्य को प्राण शक्ति प्रदान करता है।'
भारतीय वैदिक परम्परा में भी देवी-देवताओं से जुड़ा रंगों का प्रतीकवाद उपलब्ध होता है। वैदिक ऋचाओं में सप्तरश्मि, सप्तर्चि, सप्तर्षि, सप्ताश्व जैसे शब्दों का प्रयोग स्वयं रंगों की प्राचीनता पर प्रकाश डालता है। सूर्य देवता को रंगों का मूल स्रोत माना गया है। सूर्य के प्रकाश में सात रंगों का अस्तित्व सन्निहित है। कूर्म पुराण में लिखा है कि सूर्य का रंग मौसम के साथ बदलता देखा गया है। वह बसन्त ऋतु में कपिलवर्ण, ग्रीष्म में सुनहरा, वर्षा में श्वेत, शरद् में धूसर, हेमन्त में ताम्र और शिशिर में लोहित वर्ण जैसा हो जाता है।
वैदिक उपासना पद्धति में समग्र ब्रह्माण्डीय शक्ति का प्रतीक ब्रह्मा, विष्णु और महेश को माना गया है। ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता, विष्णु को संचालक और शंकर को संहारक की पहचान दी गयी। इन तीन विराट् शक्तियों को क्रमशः लाल, काला और सफेद रंगों में दर्शाया गया। लाल रंग ऊर्जा, सक्रियता और चेतना का प्रतीक है, काला संरक्षण का प्रतीक है और सफेद विनाश यानी शून्य का प्रतीक है।
1. R.B. Amber, Colour Therapy, p. 53 2. कूर्मपुराण 1/41/23
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