________________
रंगों की मनोवैज्ञानिक प्रस्तुति
99
लेश्या द्वारा मन के भीतरी रसायनों का पता लगाया जा सकता है। इस सन्दर्भ में अनेक वैज्ञानिक परीक्षण किए गए हैं। व्यक्ति का आचरण पसीने की गंध द्वारा जाना जा सकता है। जो व्यक्ति क्रोधी, ईर्ष्यालु, झगड़ालू, दूषित मनोभाव वाला होता है उसकी गन्ध में और जो सरल, निष्कपट, पवित्र आचरण वाला होता है, उसके पसीने की गन्ध में स्पष्टतः अन्तर पाया जाता है। जैन तीर्थंकरों के शारीरिक अतिशयों की पहचान में सुगन्ध को भी एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व माना गया है। उल्लेख मिलता है कि तीर्थंकर के शरीर से कमल के फूल जैसी गन्ध आती है। यह गन्ध शुभ भावों की प्रतीक है।
रंग मनोविज्ञान और लेश्या-मनोविज्ञान के सन्दर्भ में आज अनेक तथ्य मनोवैज्ञानिकों ने और अध्यात्मवेत्ताओं ने प्रस्तुत किए हैं। आज भी इस दिशा में व्यक्तित्व बदलाव से जुड़ी अनेक संभावनायें उजागर हो सकती हैं यदि शोध, परीक्षण, प्रयोग को अन्वेषक दृष्टि और सही दिशा मिले। इस ग्रन्थ को लिखते समय मुझे अनेक लेखकों, शोधकर्ताओं एवं प्रयोगकर्ताओं द्वारा लिखित साहित्य को पढ़ने का अवसर मिला। जो पढ़ा, समझा वही संक्षिप्त संकलन के रूप में प्रस्तुत किया गया। यूं तो अब भी यह विषय शोध की व्यापकता से जुड़ा है, क्योंकि ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती। फिर भी जो लेखक एवं ग्रंथ सहयोगी बने हैं वे सभी मेरे लिए आदरास्पद बने हैं -
• • • •
Alex Jones, Seven Mensions of Colour R.B. Amber, Colour Therapy Faber Birren, Colour Psychology and Colour Therapy Audrey Kargere, Colour and Personality C.G. Sander, Colour in Health and Disease Linda Clark, The Ancient Art of Colour Therapy S.G.J. Ouseley, Colour Meditations Faber Birren, Colour and Human Response Orcella Rexford, How to make colour work
• • • •
1. अभिधान चिन्तामणि 1/49
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org