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लेश्या और मनोविज्ञान
कसैला होता है जबकि तेजोलेश्या का पके आम से अनन्तगुना अम्लमधुर, पद्मलेश्या का आस्रव से अनन्तगुना अम्ल, कसैला और मधुर तथा शुक्ललेश्या का खजूर से अनन्तगुना मधुर माना गया है। खट्टा-मीठा स्वाद का रसायन व्यक्तित्व के अच्छे-बुरे पक्ष पर प्रभाव डालता है।
किसी वस्तु को छूने पर वह या तो गर्म महसूस होगी या ठण्डी अथवा गीली या शुष्क। रंग विज्ञान ने रंग की गर्म/ठण्डी प्रकृति को स्पर्श इन्द्रिय के साथ जोड़कर उससे होने वाले शारीरिक तथा मानसिक प्रभावों का उल्लेख किया है। गर्म रंग जहां स्वत: संचालित स्नायुमण्डल, रक्तदबाव, धड़कन गति को उत्तेजित करते हैं, वहीं ठण्डे रंग इन क्रियाओं को उत्तेजना से मुक्त करते हैं। भावात्मक स्तर पर गर्म रंग बहिर्मुखता का तथा ठण्डा रंग अन्तर्मुखता का प्रतीक माना गया है।
जैन-दर्शन के अनुसार लेश्या स्पर्शवान मानी गई है। इसका स्पर्श आठ प्रकार का होता है - कर्कश/मृदु, गुरु/लघु, शीत/उष्ण, रुक्ष/स्निग्ध। उत्तराध्ययन में अशुभ लेश्या का स्पर्श गाय की जीभ से अनन्तगुना कर्कश और शुभलेश्या का स्पर्श नवनीत से अनन्तगुना मृदु कहा गया है। स्पर्श के साथ रंगों की भावात्मक व्याख्या रासायनिक परिवर्तन की
ओर संकेत करती है। रंगों द्वारा केवल शारीरिक रसायन ही नहीं बदलते, आन्तरिक क्रोध, मान, माया, लोभ जैसे मानसिक रसायन भी अध्यात्म क्षेत्र में बदलते देखे गए हैं । इसीलिये रंग चिकित्सकों ने इन्द्रियों तथा उनके विषयों का रंग निर्धारण कर भिन्न-भिन्न रंगों में उनका प्रयोग किया है।
पदार्थ और मनुष्य की विशेषताओं का उल्लेख गन्ध के माध्यम से भी किया जा सकता है। यद्यपि रंग और गन्ध के बीच स्पष्ट संबंध नहीं देखा गया है किन्तु यह मनुष्यों के अनुभवों में व्यक्त होता है। सामान्यतः देखा जाता है कि गुलाबी, पीला और हरा रंग अच्छी सुगन्ध वाले और स्लेटी, भूरा, काला तथा गहरी छवियों के रंग दुर्गन्ध वाले माने जाते हैं। ___ जैन साहित्य में लेश्या के साथ गन्ध का उल्लेख मिलता है। बुरे भावों की गन्ध, अच्छे भावों की गन्ध व्यक्तिगत चरित्र की स्वयं पहचान बनती है। कृष्णलेश्या का वर्ण ही काला नहीं होता अपितु आगमों ने उसके परमाणुओं में दुर्गन्ध का भी उल्लेख किया है। उत्तराध्ययन सूत्र में बताया गया है कि अशुभ लेश्या (कृष्ण, नील व कपोत) की दुर्गन्ध मरे हुए कुत्ते की सड़ांध से अनन्तगुना अधिक होती है और शुभलेश्या (तेज, पद्म और शुक्ल) की सुगन्ध सुरभि कुसुम की गन्ध से अनन्तगुना मनोज्ञ होती है।
1. उत्तराध्ययन 34/10-15; 2. वही, 34/18-19 3. Faber Birren, Colour Psychology and Colour Therapy, p. 166 4. उत्तराध्ययन 34/16-17
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