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________________ रंगों की मनोवैज्ञानिक प्रस्तुति प्रत्येक रंग प्रकम्पन ध्वनि में बदल जाता है। इसे ऑरोटॉन (Aurotone) द्वारा सुना जा सकता है। फेबर बिरेन (Faber Birren) लिखते हैं कि बहुत से ऐसे व्यक्ति पाए गए जो आन्तरिक स्तर पर या अचेतन स्तर पर ध्वनि में रंगों को देखते हैं। सत्रहवीं शताब्दी में प्रसिद्ध वैज्ञानिक न्यूटन ने (Diatonic Scale) के सात स्वरों का सात रंगों के साथ संबंध स्थापित किया। 'सी' के लिये लाल, 'डी' के लिये नारंगी, 'ई' के लिए पीला, 'एफ' के लिए हरा, 'जी' के लिए नीला, 'ए' के लिये जामुनी तथा 'बी' के लिये बैंगनी रंग निश्चित किए । सामान्य धीमा संगीत नीले रंग के साथ, तेज संगीत लाल रंग के साथ, उच्च स्वर हल्के रंगों के साथ तथा गहरे स्वर गहरे रंगों के साथ जुड़े हुए हैं। प्रयोगों से यह भी ज्ञात हुआ है कि जहां ध्वनि द्वारा शीतल रंगों (नीला, हरा, बैंगनी ) का प्रभाव अधिक गहरा हो जाता है, वहां गर्म रंगों (लाल, नारंगी तथा पीला) का प्रभाव कम हो जाता है। 1 97 रंग और स्वाद के संदर्भ में आर. बी. एम्बर ( R. B. Amber) का कहना है कि सूर्य की सात किरणें और पंच तत्त्वों की मात्रा और गुण की भिन्नता के आधार पर भोजन की संरचना एवं प्रभाव भिन्न-भिन्न पाए जाते हैं। हर भोजन का अपना स्वाद होता है । उसे छह रूपों में बताया गया है - मीठा, खट्टा, नमकीन, तीखा, कड़वा और कषैला । भोजन भी गर्म, ठण्डा एवं वायु की प्रकृति वाला होता है। गर्म भोजन जैसे तीखा, खट्टा व नमकीन अग्नि तत्त्व से जुड़ा है और रक्त परिसंचरण तंत्र द्वारा नियन्त्रित होता है। कड़वा, कषैला और मीठा क्रमश: एक-दूसरे से ज्यादा ठण्डा होता है और लसिका तंत्र द्वारा नियन्त्रित होता है। वायु प्रधान भोजन न ठण्डे होते हैं, न गर्म किन्तु मस्तिष्क एवं सुषुम्ना तंत्र को प्रभावित करते हैं। फेबर बिरेन (Faber Birren ) का मत है कि हल्का पीला, लाल, नारंगी, भूरा, गर्म पीला, साफ हरा ये भूख के रंग हैं। गुलाबी, हरा नीला और बैंगनी रंग निश्चित रूप से मीठे हैं। 4 - भोजन का स्वाद सिर्फ शरीर रसायन से ही नहीं जुड़ा है, इसका प्रभाव मन पर भी पड़ता है। जैन-दर्शन में रसना इन्द्रिय को रस लोलुपता, अजितेन्द्रियता, बहिर्मुखता का प्रतीक माना गया है। लेश्या के सन्दर्भ में शुभ-अशुभ भावों की पहचान भी रस के साथ जुड़ी है। उत्तराध्ययनमें स्पष्ट कहा गया है कि कृष्णलेश्या का रस तूंबे से अनन्तगुना कड़वा, नीललेश्या का त्रिकटु से अनन्तगुना तीखा, कापोतलेश्या का केरी से अनन्तगुना 1. Corinne Heline, Healing and Regeneration through Colour, An Exhaustive Survey compiled by Health Research, Colour Healing, p. 42 2. Faber Birren, Colour Psychology and Colour Therapy, p. 163, 164 3. R.B. Amber, Colour Therapy, p. 197, 198 4. Faber Birren, Colour Psychology and Colour Therapy, p. 167 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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