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________________ रंगों की मनोवैज्ञानिक प्रस्तुति 95 भावलेश्या और द्रव्यलेश्या का परस्पर गहरा संबंध है। द्रव्यलेश्या के स्थान के बिना भावलेश्या का स्थान नहीं बन सकता। जितने द्रव्यलेश्या के स्थान हैं, उतने ही भावलेश्या के स्थान होने चाहिए। रंग मनोविज्ञान मानता है कि रंग मनुष्य की आन्तरिक चेतना पर अधिक काम करता है इसलिए भावों के साथ रंग का गहरा संबंध है। इस तथ्य को आज का विज्ञान ही नहीं, हजारों वर्ष पूर्व जैन आगमों ने प्रस्तुत कर दिया था। गणधर गौतम ने भगवान महावीर से पूछा - भन्ते ! हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्म, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि जितने मानसिक सूक्ष्म भाव हैं, क्या इनमें रंग/वर्ण होता है ? भगवान ने कहा - इनमें पांचों वर्ण/रंग होते हैं यानी प्रत्येक प्रवृत्ति का अपना एक विशेष रंग होता है।' प्रज्ञापना में उल्लेख मिलता है कि भगवान से प्रश्न पूछा गया कि कृष्ण, नील, कापोत लेश्या के परिणाम प्रशस्त हैं या अप्रशस्त? भगवान ने उत्तर दिया - कृष्ण, नील, कापोत लेश्या के समय हमारे आत्म-परिणाम प्रशस्त-अप्रशस्त दोनों होते हैं सापेक्ष दृष्टि से कहा जाता है कि कृष्ण की अपेक्षा नीललेश्या विशुद्ध है, नील की अपेक्षा कापोतलेश्या विशुद्ध है। इस सिद्धान्त का आधार परिणामों में संक्लेश-असंक्लेश का होना है। संक्लेश का अर्थ किया गया - चित्त की मलिनता, असमाधि, अविशुद्धि, अरति, राग-द्वेष की तीव्र परिणति। इस सन्दर्भ में संक्लेश का चरम बिन्दु है - कृष्णलेश्या और असंक्लेश का चरम बिन्दु है - शुक्ललेश्या। विशुद्धि की जघन्य अवस्था है तेजोलेश्या, मध्यम है पद्मलेश्या, उत्कृष्ट है शुक्ललेश्या। अविशुद्धि की चरम स्थिति है कृष्ण, मध्यम है नील और जघन्य है कापोतलेश्या। इसलिए कहा जा सकता है कि सभी रंग अच्छे या बुरे नहीं होते। प्रत्येक रंग लेश्या का आधार उसकी कषायात्मक चेतना की अशुद्धता और योगप्रवृत्ति-जन्य चंचलता है या दूसरे शब्दों में रंगों की चमक और विशुद्धता है। लेश्या : समय, लम्बाई एवं वजन फेबर बिरेन (Faber Birren) ने गोल्डस्टेन (Goldstein) का मत बताते हुए कहा कि रंगों की गुणात्मक पहचान के सन्दर्भ में समय, लम्बाई और वजन तीनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका मानी गई है। लाल प्रकाश के प्रभाव में समय की अनुभूति ज्यादा होती है जबकि नीले और हरे प्रकाश में समय की मात्रा कम अनुभूत होती है । गर्म रंग में वस्तु लम्बी और ठण्डे रंग में वस्तु छोटी दीखती है। इसी तरह लाल रंग में वजन ज्यादा और हरे रंग में वजन कम महसूस होता है। 1. भगवती सूत्र 12/102-107 2. प्रज्ञापना पद 17/सूत्र 138 (उवंगसुत्ताणि खण्ड-2, पृ. 234) 3. ठाणं - टिप्पण - सूत्र 438, पृ. 280 4. Faber Birren, Colour Psychology and Colour Therapy, p. 146 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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