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रंगों की मनोवैज्ञानिक प्रस्तुति
हरे रंग को पसन्द करने वाले व्यक्ति में सामाजिक समायोजन करने की शक्ति होती है। ये सभ्य एवं पारम्परिक होते हैं। हरे रंग की नापसन्दगी मानसिक विक्षिप्तता को दर्शाती है । ऐसे लोग सामाजिक परिवेश से दूर रहते हैं । उनमें सन्तुलन की कमी रहती है। ऐसे व्यक्ति प्राय: अकेले पड़ जाते हैं ।
इस रंग की विविध छवियों के अर्थ इस प्रकार बताए गए हैं- स्पष्ट व चमकदार हरा रंग श्रेष्ठ गुणों का हल्का हरा समृद्धि और सफलता का, मध्यम हरा समायोजनशीलता व चपलता का, साफ हरा सहानुभूति का, गहरा हरा विश्वासघात का अर्थ प्रकट करता है । काला मिश्रित हरा ईर्ष्या, स्पर्धा और अन्धविश्वास का अर्थ देता है 1
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नीला रंग सत्य, भक्ति, शांति और वफादारी का रंग है। यह ठण्डा, सौम्य और शांत होता है। इसे आध्यात्मिकता और ध्यान का रंग माना गया है। यह मन को तनावमुक्त करता है तथा आध्यात्मिक व दार्शनिक विषयों के प्रति प्रेरित करता है। इस रंग का प्रभाव जब मन पर पड़ता है तो मनुष्य दूसरों के प्रति संवेदनशील होता है। अति उत्साह के भाव पर नियन्त्रण की क्षमता प्राप्त होती है। पाप के प्रति पश्चात्ताप जागता है।
नीला रंग पसन्द करने वाले अन्तर्मुखी होते हैं। ये स्वभावतः यथास्थिति को चाहने वाले होते हैं। ऐसे लोगों का चरित्र उनके स्वयं के लिए वजनी होता है। ऐसे व्यक्ति सजग, नियमित और प्रशंसा के पात्र होते हैं। ये अपने इन गुणों के प्रति जागरूक होते हैं। इस रंग को पसन्द न करने वालों में विद्रोह, अपराध, असफलता की भावना, दूसरों की सफलता पर क्रोध करने की स्थिति रहती है। ऐसे व्यक्ति कठिन परिश्रम करने पर भी पुरस्कृत नहीं हो पाते हैं । इस रंग की उपेक्षा खिन्न मनःस्थिति का द्योतक है।
छवियों के प्रभाव की दृष्टि से गहरा स्पष्ट नीला रंग पवित्र धार्मिक अनुभूति का, कान्तिहीन नीला रंग आदर्श विचारों के प्रति समर्पण भाव का, चमकदार नीला वफादारी और ईमानदारी का सूचक है। बैंगनी झांईयुक्त नीला रंग सही निर्णय को दर्शाता है।
जामुनी रंग पवित्र व प्रेरणादायी होता है। यह नीले और बैंगनी रंग का मिश्रण है । यह मन और आत्मा को उत्प्रेरित एवं पुनर्जागृत कर आन्तरिक स्तर तक पहुंच कर ज्ञान और बोध के नए क्षेत्र खोलता है। व्यक्तित्व और चरित्र से जुड़ा यह रंग कुण्ठा, भय, सामान्य निषेधात्मक स्थितियों का निरोधक है। यह सूक्ष्म शरीर के मनस् प्रकम्पन (Psychic Currents) को शासित करता है। इसके द्वारा आज्ञाचक्र, जिसको तीसरा नेत्र भी कहा जाता है, संचालित होता है। यह शारीरिक, सांवेगिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर दृष्टि, श्रवण और गन्ध को प्रभावित करता है।
बैंगनी रंग उच्च आध्यात्मिक स्तर पर भक्ति और पूजा का प्रतीक है परन्तु शारीरिक स्तर पर यह विषाद उत्पन्न करने वाला है। यह रंग उदासी, धर्मनिष्ठा और भावुकता से जुड़ा है। प्राचीन काल में लोग इसे देवता के वस्त्र एवं पवित्रता का प्रतीक मानते थे। लाल और पीले का मिश्रण होने के कारण इसमें दोनों के गुण विद्यमान हैं।
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