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________________ ७६ / श्रमण महावीर 'चलिये, अभी बताये देता हूं।' संगम आगे हो गया गांव के लोग उसके पीछे-पीछे चलने लगे। वे सब भगवान् के पास पहुंचे। संगम ने कहा, 'ये हैं मेरे गुरु।' लोगों ने भगवान् से पूछा, 'क्या तुम चोर हो?' भगवान् मौन रहे। लोगों ने फिर पूछा, 'क्या तुमने इसे चोरी करने के लिए भेजा था? भगवान् अब भी मौन थे। लोगों ने सोचा, कोई उत्तर नहीं मिल रहा है, अवश्य ही इसमें कोई रहस्य छिपा हुआ है । वे भगवान् को बांधकर गांव में ले जाने लगे। ___महाभूतिल उस युग का प्रसिद्ध ऐन्द्रजालिक था। वह उस रास्ते से जा रहा था। उसने देखा, 'बन्धन मुक्ति को अभिभूत करने का प्रयत्न कर रहा है।' उसने दूर से ही ग्रामवासियों को ललकारा- 'मूर्यो! यह क्या कर रहे हो?' उन्होंने देखा - यह महाभूतिल बोल रहा है। उनके पैर ठिठक गये। वे कुछ सिर झुकाकर बोले, 'महाराज ! यह चोर है। इसे पकड़कर गांव में ले जा रहे हैं।' इतने में महाभूतिल नजदीक आ गया। वह भगवान् के पैरों में लुढ़क गया। ग्रामवासी आश्चर्य में डूब गये। यह क्या हो रहा है? हम भूल रहे हैं या महाभूतिल? क्या यह चोर नहीं? वे परस्पर फुसफुसाने लगे। महाभूतिल ने दृढ़ स्वर में कहा, 'यह चोर नहीं है? महाराज सिद्धार्थ का पुत्र राजकुमार महावीर है । जिस व्यक्ति ने राज्य-सम्पदा को त्यागा है, वह तुम्हारे घरों में चोरी करेगा? मुझे लगता है कि तुम लोग चिंतन के क्षेत्र में बिलकुल दरिद्र हो।' ___ 'महाराज! आप क्षमा करें। हमारी भूल हुई है, उसका कारण हमारा अज्ञान है। हमने जान-बूझकर ऐसा नहीं किया' ग्रामवासी एक साथ चिल्लाए। । भगवान् पहले भी शांत थे, बीच में भी शांत थे और अब भी शांत हैं। शांति ही उनके जीवन की सफलता है। ९. भगवान् तोसली से प्रस्थान कर मोसली गांव पहुंचे। वहां संगम ने फिर उसी घटना की पुनरावृत्ति की। आरक्षिक भगवान् को पकड़कर राजकुल में ले गए। उस गांव के शास्ता का नाम था सुमागध। वह सिद्धार्थ का मित्र था। उसने भगवान् को पहचाना और मुक्त कर दिया। उसने अपने आरक्षिकों की भूल के लिए क्षमा मांगी और हार्दिक अनुताप प्रकट किया। १०. भगवान् फिर तोसली गांव में आए। संगम ने कुछ औजार चुराए और भगवान् १. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० ३१२ । २. साधना का ग्यारहवां वर्ष। ३. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० ३१३ । ४. साधना का ग्यारहवां वर्ष। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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