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कहीं वंदना और कहीं बंदी / ७७
के पास लाकर रख दिए । आरक्षिक भगवान् को तोसली क्षत्रिय के पास ले गए। क्षत्रिय ने कुछ प्रश्न पूछे । भगवान् ने कोई उत्तर नहीं दिया। क्षत्रिय के मन में संदेह हो गया। उसने फांसी के दंड की घोषणा कर दी।
जल्लाद ने भगवान् के गले में फांसी का फंदा लटकाया और वह टूट गया। दूसरो बार फिर लटकाया और फिर टूट गया। सात बार ऐसा ही हुआ । आरक्षिक हैरान थे। वे क्षत्रिय के पास आए और बीती बात कह सुनाई । क्षत्रिय ने कहा, 'यह चोर नहीं है । कोई पहुंचा हुआ साधक है।' वह दौड़ा-दौड़ा आया। भगवान् के चरणों में नमस्कार कर उसने अपने अपराध के लिए क्षमा याचना की। ___भगवान् अक्षमा और क्षमा – दोनों की मर्यादा से मुक्त हो चुके थे। उनके सामने न कोइ अक्षम्य था और न कोई क्षम्य । वे सहज शांति की सरिता में निष्णात होकर विहार कर रहे थे।
१. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० ३१३ ।
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