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________________ ६२/ श्रमण महावीर है। उन्हें अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ। वे कुछ और आगे बढ़े, फिर ध्यान से देखा। उन्हें अपनी धारणा से प्रतिकूल ही देखने को मिला कि भिक्षु अभी अच्छी तरह से जीवित है। वे हर्ष-विभोर हो आकाश में उछले। सबने उच्च स्वर से तीन बार कहा 'शान्तं पापं, शान्तं पापं, शान्तं पापं । भिक्षु ! तुम्हारी कृपा से हमारे गांव का उपद्रव मिट गया। भय समाप्त हो गया, अब यहां कोई भय नहीं रहा।' उत्पल आगे आया। उसने भगवान् के शरीर को देखा, फिर रात की घटना को देखा। वह निमित्त-बल से सारी स्थिति जान गया। वह बोला-'भन्ते! आज रात को आपने कुछ नीदं ली हैं?' 'हां उत्पल।' 'उसमें आपने कुछ स्वप्न देखे हैं?' 'तुम सही हो।' 'भन्ते ! आप बहुत बड़े ज्ञानी हैं। उनका फलादेश जानते ही हैं। फिर भी मैं अपनी उत्कंठा की पूर्ति के लिए कुछ कहना चाहता हूं।' उत्पल कुछ ध्यानस्थ हुआ। वह अपने मन को निमित्त-विद्या में एकाग्र कर बोला'भन्ते!' १. ताल पिशाच को पराजित करने का स्वप्न मोह के क्षीण होने का सूचक है। २. श्वेत पंखवाले पुस्कोकिल का स्वप्न शुक्लध्यान के विकास का सूचक है। ३. विचित्र पंखवाले पुस्कोकिल का स्वप्न अनेकांत दर्शन के प्रतिपादन का सूचक ४. भन्ते! चौथे स्वप्न का फल मैं नहीं समझ पा रहा हूं। ५. श्वेत गौवर्ग का स्वप्न संघ की समृद्धि का सूचक है। ६. कुसुमित पद्म सरोवर का स्वप्न दिव्यशक्ति की उपस्थिति का सूचक है। ७. समुद्र तैरने का स्वप्न संसार-सिन्धु के पार पाने का सूचक है। ८. सूर्य का स्वप्न कैवल्य की प्राप्ति होने का सूचक है। ९. पर्वत को आंतों से वेष्टित करने का स्वप्न आपके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों के व्यापक होने का सूचक है। १०. मेरु पर्वत पर उपस्थिति का स्वप्न धर्म का उच्चतम प्रस्थापना करने का सूचक __भगवान ने कहा - 'उत्पल! तुम्हारा निमित्तज्ञान बहुत विकसित है। तुमने जो स्वप्नार्थ बताए हैं, वे सही हैं । मेरा चौथा (रत्न की दो मालाओं का) स्वप्न साधु-धर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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