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________________ प्रगति के संकेत / ६३ और गृहस्थ-धर्म इस द्विविध धर्म की स्थापना सूचक है। २. भगवान् गंडकी नदी को नौका से पार कर वाणिज्यग्राम आए। उसके बाह्य भाग में एक रमणीय और एकान्त प्रदेश था। भगवान् वहां स्थित होकर ध्यानलीन हो गए। उस गांव में आनंद नामक गृहस्थ रहता था। वह भगवान् पार्श्व की परम्परा का अनुयायी था। वह दो-दो उपवास की तपस्या और सूर्य के आतप का आसेवन कर रहा था। उसे इस प्रक्रिया से अतीन्द्रियज्ञान (अवधिज्ञान) उपलब्ध हो गया। वाणिज्यग्राम के बाह्य भाग में भगवान् की उपस्थिति का बोध होने पर वह वहां आया। भगवान् के चरणों में प्रणिपात कर बोला, 'भंते ! अनुत्तर है आप की कायगुप्ति, अनुत्तर है आपकी वचनगुप्ति और अनुत्तर है आपकी मनोगुप्ति। भन्ते ! मुझे स्पष्ट दीख रहा है कि आपको कुछ वर्षों के बाद कैवल्य प्राप्त होगा।' भगवान् कैवल्य की दिशा में आगे बढ़ रहे थे। उसके संकेत वातावरण में तैरने लग गए। १. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० २७३- २७५ । २. साधना का दसवां वर्ष। ३. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० ३०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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