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________________ १३ प्रगति के संकेत भगवान् महावीर अभी अकेले ही विहार कर रहे थे। उनका न कोई सहायक है और न कोई शिष्य । उन जैसे समर्थ व्यक्ति को शिष्य का उपलब्ध होना कोई बड़ी बात नहींथी। पर वे स्वतंत्रता की अनुभूति किए बिना उसका बन्धन अपने पर डालना नहीं चाहते थे। १. भगवान् पार्श्व की शिष्य-परम्परा अभी चल रही है। उसमें कुछ साधु बहुत योग्य हैं, कुछ साधना में शिथिल हो चुके हैं और कुछ साधुत्व की दीक्षा छोड़ परिव्राजक या गृहवासी बन चुके हैं। उत्पल पार्श्व की परम्परा में दीक्षित हुआ। उसने दीक्षाकाल में अनेक विद्याएं अर्जित की। वह दीक्षा को छोड़ परिव्राजक हो गया । वह अस्थिक-ग्राम में रह रहा है। अष्टांग निमित्त विद्या पर उसका पूर्ण अधिकार है। ___भगवान् महावीर शूलपाणि यक्ष के मन्दिर में उपस्थित हैं। समूचे अस्थिकग्राम में यह चर्चा हो रही है कि एक भिक्षु अपने गांव में आया है और वह शूलपाणि यक्ष के मन्दिर में ठहरा है। लोग परस्पर कहने लगे, यह अच्छा नहीं हुआ। बेचारा मारा जाएगा। - क्या पुजारी ने उसे मनाही नहीं की? क्या किसी आदमी ने उसे बताया नहीं कि उस स्थान में रात को रहने का अर्थ मौत को बुलावा है। अब क्या हो, रात ढल चुकी है। इस समय वहां कौन जाए?' पुजारी और उसके साथियों ने लोगों को बताया कि हमने सारी स्थिति उसे समझा दी थी। वह कोई बहुत ही आग्रही भिक्षु है। हमारे समझाने पर भी उसने वहीं रहने का आग्रह किया। इसका हम क्या करें? यह बात उत्पल तक पहुंची। उसने सोचा, 'कोई साधारण व्यक्ति भयंकर स्थान में रात को ठहर नहीं सकता। स्थिति को जान लेने पर भी वहां ठहरा है तो अवश्य ही कोई महासरव व्यक्ति है।' विचार की गहराई में डुबकी लगाते-लगाते उसके मन में एक विकल्प उत्पन्न हुआ, 'मैंने सुना है कि भगवान् महावीर इसी वर्ष दीक्षित हुए हैं। वे बहुत ही पराक्रमी हैं। कहीं वे ही तो नहीं आए हैं?' काफी रात जाने तक लोग बातें करते रहे । वे सोए तब भी उनके दिल में करुणा जागृत थी। प्रातः काल लोग जल्दी उठे। उषा होते-होते वे मन्दिर में आ पहुंचे। कुछ लोग भगवान् को देखने का कुतूहल लिये आए और कुछ लोग अन्त्येष्टि-संस्कार सम्पन्न करने के लिए। वे सब मन्दिर के दरवाजे में घुसे। वे यह देख आश्चर्य में डूब गए कि भिक्षु अभी जीवित १. साधना का पहला वर्ष।स्थान- अस्थिकग्राम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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