SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्यान, आसन और मौन / ५३ वे ध्येय का परिवर्तन भी करते रहते थे। उनके मुख्य-मुख्य ध्येय ये थे१. ऊर्ध्वगामी, अधोगामी और तिर्यग्गामी कर्म। २. बंधन, बंधन-हेतु और बंधन-परिणाम । ३. मोक्ष, मोक्ष-हेतु और मोक्ष-सुख। ४. सिर, नाभि और पादांगुष्ठ। ५. द्रव्य, गुण और पर्याय। ६.नित्य और अनित्य। ७. स्थूल - संपूर्ण जगत्। ८. सूक्ष्म – परमाणु। ९. प्रज्ञा के द्वारा आत्मा का निरीक्षण । भगवान् ध्यान की मध्यावधि में भावना का अभ्यास करते थे। उनके भाव्य-विषय ये थे - १. एकत्व—जितने संपर्क हैं, वे सब सांयोगिक हैं। अंतिम सत्य यह है कि आत्मा अकेला है। २. अनित्य-संयोग का अन्त वियोग में होता है अतः सब संयोग अनित्य हैं। ३. अशरण-अंतिम सचाई यह है कि व्यक्ति के अपने संस्कार ही उसे सुखी और दुःखी बनाते हैं। बुरे संस्कारों के प्रकट होने पर कोई भी उसे दुःखानुभूति से बचा नहीं सकता। भगवान् ध्यान के लिए प्रायः एकान्त स्थान का चुनाव करते थे। वे ध्यान खड़े और बैठे - दोनों अवस्थाओं में करते थे। उनके ध्यानकाल में बैठने के मुख्य आसन थे - पद्मासन, पर्यंकासन, वीरासन, गोदोहिका और उत्कटिका। भगवान् ध्यान की श्रेणी का आरोहण करते-करते उसकी उच्चतम कक्षाओं में पहुंच गए। वे लम्बे समय तक कायिक-ध्यान करते। उससे श्रान्त होने पर वाचिक और मानसिक । कभी द्रव्य का ध्यान करते, फिर उसे छोड़ पर्याय के ध्यान में लग जाते । कभी एक शब्द का ध्यान करते, फिर उसे छोड़ दूसरे शब्द के ध्यान में प्रवृत्त हो जाते। ___भगवान् परिवर्तनयुक्त ध्येय वाले ध्यान का अभ्यास कर अपरिवर्तित ध्येय वाले ध्यान की कक्षा में आरूढ़ हो गए। उस कक्षा में वे कायिक, वाचिक या मानसिक - जिस ध्यान में लीन हो जाते, उसी में लीन रहते। द्रव्य या पर्याय में से किसी एक पर स्थित हो जाते। शब्द का परिवर्तन भी नहीं करते। वे इस कक्षा का आरोहण कर श्रांति की अवस्था पार कर गए। १. आचारांगचूर्णि, पृ० ३२४ २. आचारांगचूर्णि, पृ० ३२४. आचारांगवृत्ति पत्र २८३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy