________________
पुरुषार्थ का प्रदीप / २३
ध्यान और तपस्या से। राम कर्मवीर हैं और महावीर धर्मवीर हैं । ये दोनों भारतीय संस्कृति के महारथ के ऐसे दो चक्र हैं, जिनसे उसे निरन्तर गति मिली है और मिल सकती है।
महावीर अपनी जन्मभूमि से प्रस्थान कर कर्मारग्राम (वर्तमान कामनछपरा) पहुंचे। उन्हें खाने-पीने की कोई चिन्ता नहीं थी। दीक्षा स्वीकार के प्रथम दिन वे उपवासी थे और आज दीक्षा के प्रथम दिन भी वे उपवासी हैं। स्थान के प्रति उनकी कोई भी आसक्ति नहीं है। सुख-सुविधा के लिए कोई आकर्षण नहीं है। उनके सामने एक ही प्रश्न है और वह हैं परतंत्रता के निदान के खोज। ___महावीर गांव के बाहर जंगल के एक पार्श्व में खड़े हैं। वे ध्यान में लीन हैं। उनके चक्षु नासाग्र पर टिके हुए हैं । दोनों हाथ घुटनों की ओर झुके हुए हैं। उनकी स्थिरता को देख दूर से आने वालों को स्तम्भ की अवस्थिति का प्रतिभास हो रहा है।
एक ग्वाला अपने बैलों के साथ गांव को लौट रहा था। उसने महावीर को जंगल में खड़े हुए देखा। उसने बैल वहीं छोड़ दिए। वह अपने घर चला गया। महावीर सत्य की खोज में खोए हुए थे। वे अन्तर जगत् में इतने तन्मय थे कि उन्हें बाहर की घटना का कोई आभास ही नहीं हुआ। बैल चरते-चरते जंगल में आगे चले गए। ग्वाला घर काम निपटाकर वापस आया। उसने देखा वहां बैल नहीं है। उसने पूछा, 'मेरे बैल कहां हैं?'
महावीर ने इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया। वे अपने अन्तर् के प्रश्नों का उत्तर देने में इतने लीन थे कि उन्होंने ग्वाले का प्रश्न सुना ही नहीं, फिर उत्तर कैसे देते? ___ ग्वाले ने सोचा, इन्हें बैलों का पता नहीं हैं। वह उन्हें खोजने के लिए जंगल की ओर चल पड़ा। सूरज पश्चिम की घाटियों के पार पहुंच चुका था । रात ने अपनी विशाल बांहें फैला दीं। तमस् ने भूमि के मुंह पर श्यामल चूंघट डाल दिया। ग्वाला बैलों को खोजता रहा, पर उनका कोई पता नहीं चला। वह अपने खेत में चला गया।
प्रकाश ने फिर तमस् को चुनौती दी। सूर्य उसकी सहायता के लिए आ खड़ा हुआ। दिन ने उसकी अगवानी में सारे द्वार खोल दिए। तमस् के साथ-साथ नींद का भी आसन डोल उठा । ग्वाला जागा । वह नित्यकर्म किए बिना ही बैलों की खोज में निकल गया। वह घूमता-घूमता फिर वहीं पहुंचा, जहां महावीर ध्यान की मुद्रा में गिरिराज की भांति अप्रकम्प खड़े हैं। उसने देखा - बैल महावीर के आस-पास चर रहे हैं। रात की थकान, असफलता और महावीर के आस-पास बैलों की उपस्थिति ने उसके मन में क्रोध की आग सुलगा दी। उसके मन का संदेह इस कल्पना के तट पर पहुंच गया कि ये मुनि बैलों को हथियाना चाहते हैं। इसलिए मेरे पूछने पर ये मौन रहे। उनके बारे में मुझे कुछ भी नहीं बताया। वह अपने आवेग को रोक नहीं सका। वह जैसे ही रस्सी को हाथ में ले १. साधना का पहला वर्ष । स्थान- कर्मारग्राम।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org