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________________ पुरुषार्थ का प्रदीप एक विद्यार्थी बहुत प्रतिभाशाली है। उसने पूछा, 'मनुष्य के जीवन का उद्देश्य क्या है ?' मैंने कहा, 'उद्देश्य जीवन के साथ नहीं आता। आदमी समझदार होने के बाद अपने जीवन का उद्देश्य निश्चित करता है । भिन्न-भिन्न रुचि के लोग हैं और उनके भिन्न-भिन्न उद्देश्य हैं । ' विद्यार्थी बोला, ‘इन सामयिक उद्देश्यों के बारे में मुझे जिज्ञासा नहीं है । मेरी जिज्ञासा उस उद्देश्य के बारे में है जो अंतिम है, स्थायी है और सबके लिए समान है । ' क्षण भर अन्तर के आलोक में पहुंचने के पश्चात् मैंने कहा, 'वह उद्देश्य है स्वतंत्रता ।' यह उत्तर मेरे अन्तस् का उत्तर था । उसने तत्काल इसे स्वीकार कर लिया फिर भी मुझे अपने उत्तर की पुष्टि किए बिना संतोष कैसे हो सकता था? मैं बोला, 'देखो, तोता पिंजड़े से मुक्त होकर मुक्त आकाश में विहरण करना चाहता है। शेर को क्या पिंजड़ा पसन्द है? हाथी को जंगल जितना पसन्द है, उतना प्रासाद पसन्द नहीं है। ये सब स्वतंत्रता के अदम्य और शाश्वत ज्योति के ही स्फुलिंग हैं।' महर्षि मनु ने ठीक कहा है, 'परतंत्रता में जो कुछ घटित होता है, वह सब दुःख है । स्वतन्त्रता में जो कुछ घटित होता है, वह सब सुख है । ' स्वतंत्रता की शाश्वत ज्योति पर पड़ी हुई भस्मराशि को दूर करने के लिए महावीर अब आगे बढ़े। उन्होंने अपने साथ आए हुए सब लोगों को विसर्जित कर दिया । इस प्रसंग में मुझे राम के वनवास गमन की घटना की स्मृति हो रही है। दोनों घटनाओं में पूर्ण सदृशता नहीं है, फिर भी अभिन्नता के अंश पर्याप्त हैं। राम घर को छोड़ अज्ञात की ओर चले जा रहे हैं। उनके साथ लक्ष्मण है, सीता है और धनुष है । महावीर भी घर को छोड़ अज्ञात की ओर चले जा रहे हैं। उनके साथ न कोई पुरुष है, न को स्त्री है और न कोई शस्त्र । दोनों के सामने लक्ष्य है - स्वतंत्रता की दिशा को आलोक से भर देना । इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए दोनों ने युद्ध किए हैं और शत्रु-वर्ग का दमन किया है। युद्ध और दमन की भूमिका दोनों की भिन्न है। राम के शत्रु हैं - भद्र मनुष्यों की स्वतंत्रता का अपहरण करने वाले दस्यु और महावीर के शत्रु हैं - आत्मा की स्वतंत्रता का अपहरण करने वाले संस्कार | राम ने उनका दमन किया धनुष से और महावीर ने उनका दमन किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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